CLASS 12.HISTORY CHAPTER - 12 संविधान का निर्माण एक नए युग की शुरुआत //NOTS IN HINDI
* संविधान :- किसी भी देश का वह लिखित दस्तावेज होता है, जिसके माध्यम से किसी भी देश की शासन प्रणाई को चलाया जाता है।
"संविधान सभा "
(i) कुल सदस्य 299 (ii) वास्तविक सदस्य (284)
"संविधान सभा "
स्थायी अध्यक्ष: डॉक. राजेन्द्र प्रसाद
अस्थायी सदस्या: डॉ. सच्चिदानंद सिंहा
प्रारूप समीति के अध्यक्ष: डॉ. वी. आर अम्बेडकर
प्र.1. "आप कैसे कह सकते है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का दौर काफी उथल-पुथल वाला था ?" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उतर (i) संविधान निर्माण को पहले के साल काफी उथल-पुथल वाले थे।
ⅱ) देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया किन्तु इसके साथ ही इसका बंटवारा भी हो गया।
ⅲ) इसमें हिंसा बड़े पैमाने पर हुई
iv) लोगों के मन में अभी भी 1942 की भारत छोड़ो आंदोलन की यादें जीवित थी।
V) सुभाष चंद्र बोस द्वारा किए गए प्रयास भी लोगों को बखुबी याद थे।
Vi) कांग्रेश और मुस्लिम लीग, आपस में सुलह - समझौते करने में लगे थे, लेकिन यह कोशिश नाकामयाब रही।
vii) किसान मजदूरों के आन्दोलन चले।
viii) अगस्त 1946 से कलकत्ता में हिंसा शुरू हुई और मेरे उत्तर- पश्चिम भारत में फैलने लगी।
ix) दंगे - फसात और हत्याओं का लंबा सिलसिला जारी रहा
x) 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस पर आनंद और खुशी का दिन था, परंतु कांग्रेश और मुस्लिम लीग के कारण गम का दिन भी बना।
xi) मुस्लिमों को पाकिस्तान में, हिन्दू सिख को भारत में रहना था।
संविधान सभा का गठन :- संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक व्ययस्क मताधिकार के आधार पर नहीं हुआ था।
प्र .2 भारतीय संविधान के कोई दो लाभ बताइए?
उतर(1) देश की एकजुटता और प्रगति के लिए एक विस्तृ गहन विचार विमर्श पर आधारित और सावधानीपूर्वक सूत्र बद्ध किया गया संविधान जरूरी था।
2) इस संविधान ने लंबे समय से चली आ रही ऊँच- नीच और अधीनता की संस्कृति में लोकतांत्रिक संस्थाओं को विकसित करने का प्रयास भी किया।
प्र.3."रॉयल इंडियन नेवी” के सिपाहियों ने विद्रोह कब और क्यों किया था?
उतर. रॉयल इंडियन नेवी" (शाही भारतीय नौसेना) के सिपाहियों ने सन् 1946 में विदेशी सहायता से सशस्त्र संघर्ष के जरिए स्वतंत्रता पाने के लिए यह विद्रोह किया था।
प्र 04. संविधान सभा के गठन के दौरान समाजवादी सभा से दूर क्यों रहें ?
उतर. क्योंकि उनका मानना था कि यह अंग्रेजों द्वारा साधी गई सभा है जिसका स्वतंत्र होना असंभव है। अतः इसलिए सामाजवादियों ने स्वयं को सभा से दूर रखा।
प्र.05उद्देश्य प्रस्ताव कब और किसने प्रस्तुत किया था?
उतर.उद्देश्य प्रस्ताव सन् 1946 में जवाहर लाल नेहरू जी ने प्रस्तुत किया था।
प्र 06. क्या संविधान सभा में हुई चर्चाएं जनमत से प्रभावित होती थी?
उतर .(i) जब संविधान सभा में बहस होती थी तो विभिन्न पक्षों की दलीलें अखबारों में छपती थी, और तमाम प्रस्तावों पर सार्वजनिक रूप से बहस होती थी।
(ii) इस तरह पेश में होने वाली इस आलोचना और जवाबी आलोचना से किसी मुद्दे पर बनने वाली सहमति या असहमति पर गहरा असर पड़ता था।
(iii) सामूहिक सहभागिता बनने के लिए जनता के सुझाव भी आमंत्रित किए जाते थे। कई बार अल्पसंख्यक अपनी मातृभाषा की रक्षा की माँग करते थे।
(ⅳ) धार्मिक अनपसंख्यक अपने विशेष हित सुरक्षित करवाना' चाहते थे और दलित जाति - शोषण के अंत की मांग करते हुए सरकारी संस्थाओं में आरक्षण चाहते थे।
प्र 07. संविधान सभा में किन दो महत्वपूर्ण मुद्देदों पर बहस चल रही थी?
उतर (i) सांस्कृतिक अधिकारों पर
(ⅱ) सामाजिक न्याया पर
प्र 08. संविधान सभा के दो प्रशासनिक अधिकारी कौन थे?
उतर(i) वी० एन. राव
(i) एस० एन ० मुखर्जी
प्र 09. उद्देश्य प्रस्ताव से आप क्या समझते है?
उतर. यह एक ऐतिहासिक प्रस्ताव था जिसमें स्वतंत्र भारत के संविधान के मूल आदर्शों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी और वह फ्रेमवर्क सुझाया गया था जिसके तहत संविधान का कार्य आगे बढ़ना था।
प्र .10. संविधान सभा के छः प्रमुख सदस्य कौन-से थे
(ⅰ) जवाहर लाल नेहरू
(ⅱ) बल्लभ भाई पटेल
(iii) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(iv) डॉ. बी. आर अम्बेडकर
(v) के० एन० मुंशी
(vi) अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
प्र 11. नेहरू जी ने 13 दिसंबर 1946 को भारतीय संविधान सभ को संबोधित करते हुए क्या भाषण दिया था? उसके द्वार दिए गए भाषण का उल्लेख कीजिए ?
उतर ⅰ) अमेरिका और फ्रांसीसी क्रांति का हवाला देते हुए नेहरू भारत में संविधान निर्माण के इतिहास को मुवि व स्वतंत्रता के एक लंबे ऐतिहासिक संघर्ष का हिस्सा सिद्ध कर रहे थे।
ⅱ) वह किसी खास तरह के लोकतंत्र को अपनाने का विरोध करते हैं और कहते है कि हमारे लोकतंत्र की रूपरेखा हमारे बीच होने वाली चर्चा से उभरेगी। वे इस बात पर जोर देते है कि भारत में संविधान के आदर्श और प्रावधान कहीं और से उठाए गए नही हो सकते हैं।
iii) उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि "हम सिर्फ नकल कसे वाले नहीं है।" उनके शब्दों, भारत में शासन की व्यवस्था स्थापित हो वह 'हमारे लोगों के स्वभाव के अनुरूप और उनको स्वीकार्य होनी चाहिए।'
iv) पश्चिम से, यहां की उपलब्धियों और विफलताओं से सबक, लेना जरूरी तो है लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि पश्चिमी समाजों को भी अन्य स्थानों पर हुए प्रयोगों से बहुत कुछ सीखना पड़ा था और लोकतंत्र की अवधारणा को बदलना पड़ा था।
v) भारतीय संविधान का उद्देश्य यह होगा कि लोकतंत्र के उदारवादी, विचारों और आर्थिक न्याय के सामाजिक विचारों का एक- दूसरे में समावेश किया जाय और भारतीय संदर्भ में इन विचारों की रचनात्मक व्याख्या की जाय।
प्र 12. संविधान सभा के कम्युनिस्ट सदस्य सोमनाथ लाहिड़ी को संविधान सभा की चर्चाओं पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद का साया क्यों दिखाई देता था ?
उतर (i) उन्होंने सदस्यों तथा आम भारतीयों से आग्रह किया साम्राज्यवादी शासन आजाद करें। कि के प्रभाव से खुद को पूरी तरह
ii) जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार शासन ती चला रही थी परंतु उसे सारा काम वायसराय तथा लंदन में बैठी ब्रिटिश सरकार की देख-रेख में करना पड़ता था।
ⅲ) लाहिड़ी ने अपने साथियों को समझाया कि संविधान सभा अंग्रेजों की बनायी हुई है और वह "अंग्रेजों की योजना को साकार करने का काम कर रही है।"
iv) एक लिहाज से यह भी सही था कि ब्रिटिश सरकार का "उसके गठन में काफी हाथ था ।
v) सरकारे सरकारी कागजों से नही बनती। सरकार जनता के इच्छा की अभिव्यक्ति होती है। हम यहाँ इसलिए जुटे है क्योंकि हमारे पास जनता की ताकत है और हम उतनी दूर तक ही जाएँगे जितनी दूर तक लोग हमे ले जाना चाहेंगे फिर चाहे वे किसी भी समूह या पार्टी से संबंधित क्यों हो।
vi) संविधान सभा उनलोगों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति का मानी जा रही थी जिन्होंने स्वतंत्रता के आन्दोलन में हिस्सा लिया था। लोकतंत्र, समानता तथा न्याय जैसे आदर्श 19 वीं सदी से भारत में सामाजिक संघर्षों के साथ गहरे तौर पर जुड़ चुके थे।
प्र 13. भारत के अंतरिम सरकार के किन्हीं दो सदस्यों के नाम बताइए।
उतर (i) बलदेव सिंह
(ii)सी राजगोपालाचारी
प्र 14. सन् 1909, 1919, और 1935 का कानून क्यों पारित किय गया था? और इन कानूनों ? का कांग्रेश के ऊपर क्या प्रभाव पड़ा था।
उतर .14 सन् 1919 में कार्यपालिका की आंशिक रूप में प्रांती विद्याधिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया और 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के अंतर्गत उसे लगभग पूरी तरह विधायिका के प्रति उत्तरदायी बना दिया गया।
इन कानूनों का कांग्रेश के ऊपर प्रभाव :- जब गवर्मेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट के तहत 8 1937 में चुनाव हुए तो 11 में से प्रांतो में कांग्रेश की सरकार बनी।
प्र15. 27 अगस्त 1947 को मद्रास के बी पोकर बहादुर ने अल्पसंख्यकों के लिए अलग निर्वाचिका की मांग क्यों की, और कई राज्ट्रवादी नेता प्रथक निर्वाचिका के प्रस्ताव पर भड़कने क्यों लगे थे?
उतर (i) राजनीतिक व्यवस्था में अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व :- बहादुर ने कहा कि अल्पसंख्यक सब जगह होते है, उन्हें हम चाहकर भी नही हटा सकते । हमें जरूरत एक ऐसे राजनीतिक ढांचे की है जिसके भीतर अल्पसंख्यक भी औरों के साथ सद्भाव के साथ जी सके और समुदायों के बीच मतभेद कम-से-कम हो। इसके लिए जरूरी है कि राजनीतिक व्यवस्था में अल्पसंख्यकों का पूरा प्रति -निधित्व हो उनकी आवाज़ सुनी जाय और उनके विचारों पर ध्यान दिया जाय।
(ii) देश के शासन में मुसलमानों की सार्थक हिस्सेदारी :- देश के शासन में मुसलमानों की एक सार्थक हिस्सेदारी सुनिश्चित कसे के लिए पृथक निर्वाचिका के अलावा और कोई रास्ता नही हो सकता। बहादुर को लगता था कि मुसलमानों की जरूरतों को गैर मुसलमान अच्छी तरह नहीं समझ सकेत : न ही अन्य समुदायों के लोग मुसलमानों का कोई सही प्रतिनिधित्व चुन सकते है।
iii)अंग्रेजों की चाल : ज्यादातर राष्ट्रवादियों को लग रहा है कि पृथक निर्वाचिका की व्यवस्था लोगों को बाँटने वे लिए अंग्रेजों की चाल थी।
iv) पृथक निर्वाचिका के प्रस्ताव में गृहयुद्ध दूंगी और हिंसा की आशंका दिखाई देना : विभाजन के कारण तो राष्ट्रवादी नेता पृथक निर्वाचिका के प्रस्ताव पर और भड़कने लगे थे। उन्हें निरंतर गृहयुद्ध, दंगों और हिंसा की आशंका दिखाई देती थी। सरदार पटेल ने कहा था कि पृथक निर्वाचिका एक ऐसा " विष है जो हमारे देश की पूरी राजनीति में समा चुका है।" उनकी राय में यह एक ऐसी मांग थी जिसने एक समुदाय को दूसरे समुदाय से भिड़ा दिया, राष्ट्र के टुकड़े कर दिए, रक्तपात को जन्म दिया और देश के विभाजन का कारण बनी ।
v) अल्पसंख्यकों के लिए खतरनाक :- पृथक निर्वाचिकाओं की माँग का जबाव देते हुए गोविन्द बल्लभ पंत ने ऐलान किया किय ह प्रस्ताव न केवल राष्ट्र के लिए बल्कि अल्पसंख्यकों वे लिए भी खतरनाक है। वह बहादुर के इस विचार से सहमत थे कि किसी लोकतंत्र की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि समाज के विभिन्न तबकों में वह कितना आम विश्वास पैदा कर पाती है।
vi) आत्मघाती माँग :- उनका कहना था कि यह एक आत्मघाती माँग है जो अल्पसंख्यकों को स्थायी रूप से अलग-थलग कर देगी, उन्हें कमजोर बना देगी और शासन में उन्हें प्रभावी हिस्सेदारी नही मिल पाएँगी।
vii) नागरिक सामाजिक पिरामिड का आधार होता है:- पंत ने कहा "हमारे भीतर यह आत्मघाती और अपमानजनक आ आदत बनी हुई है कि स्म कभी नागरिक के रूप में नही सोचते बनिक समुदाय के रूप में ही सोच पाते हैं... बो याद रखना चाहिए कि महत्व केवल नागरिक का होता है। सामाजिक पिरामिड का आधार भी और उसकी चोटी भी नागरिक ही होता है।
viii) मुसलमानों का पृथक निर्वाचिक के खिलाफ होना :- सारे मुसलमान भी पृथक निर्वाचिका की मांग के समर्थन में नहीं थे। उदाहरण के लिए, बेगम ऐज़ाज़ स्सूल को लगता, था कि पृथक निर्वाचिका आत्मघाती साबीत होगी क्योंकि इससे अल्पसंख्यक बहुसंख्यकों से कर जाएँगे।
ix) संविधान सभा के सदस्यों का पृथक निर्वाचिका के खिलाफ होना :- 1949 तक संविधान सभा के ज्यादातर सदस्य इस बात पर सहमत हो गये थे कि पृथक निर्वाचिका का प्रस्ताव अल्पसंख्यकों के हितों के खिलाफ जाता है। इसकी बजाय मुसलमानों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए ताकि राजनीतिक व्यवस्था में एक निर्णायक आवाज़ मिल सकें।
प्र.16" बेगम एजाज रसूल " को ऐसा क्यों लगता था कि मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचिक आत्मघाती साबित होगी ?
उतर.क्योंकि इससे अल्पसंख्यक बहुसंख्यकों से कर जाएंगे।
प्र.17. एन. जी. रंगा ने अल्पसंख्यकों के आर्थिक व सामाजिक स्तर को किस प्रकार संविधान सभा में उठाया था ? स्पष्ट कीजिए।
उतर(i) रंगा की नजर में असली अल्पसंख्यक गरीब और दबे कुचले लोग थे। उन्होंने इस बात को स्वागत किया कि संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को कानूनी अधिकार दिए जा रहे है मगर उन्होंने इसकी सीमाओं को भी चिन्हित किया।
(ii) उन्होंने कहा कि जब तक संविधानसम्मत अधिकारों को लागू कसे का प्रभावी इंतजाम नहीं किया जायेगा तब तक गरिबो के लिए इस बात का कोई मतलब नही है कि अब उनके पास जीने का पूर्ण रोजगार का अधिकार आ गया है: या अब वे सभा कर सकते हैं, सम्मेलन कर सकते है, संगठन बना सकते हैं और उनके पास अन्य नागरिक स्वतंत्रताएँ है।
iii) यह जरूरी था कि ऐसी परिस्थितियाँ बनाई जाएँ जहाँ संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का जनता प्रभावी ढंग से प्रयोग कर सकेगा रंगा ने कहा कि, "उन्हें सहारों की जरूरत है। उन्हें एक सीढ़ी चाहिए।"
iv) रंगा ने आम जनता और संविधान सभा में उनके प्रतिनिधित्व का दावा करने वालो के बीच मौजूद विशाल खाई की ओर भी ध्यान आकर्षित कराया।
प्र 17. भारतीय संविधान सभा के सबसे बड़े आदिवासी नेता ने जयपाल सिंह के नेतृत्व में आदिवासियों की किन महत्वपूर्ण पहलुओं व स्थितियों का उजागर किया गया ?
उतर .(i) आदिवासियों के साथ सही व्यवहार न होना :- जयपाल सिंह ने कहा कि मेरा सहज विवेक कहता है कि हममें से हरेक व्यक्ति को मुक्ति के उस मार्ग पर चलना चाहिए और मिलकर लड़ना चाहिए। महोदय, अगर भारतीय जनता में ऐसा कोई समूह है जिसके साथ सही व्यवहार नही किया गया है तो वह मेरा समूह है। मेरे लोगों को पिछले 6000 साल से अपमानित किया जा रहा है, उपेक्षित किया जा रहा है...।
ii) आदिवासियों का लम्बे समय तक शोषण किया जाना मेरे समाज का पूरा इतिहास भारत के गैर-मूल निवासियों के हाथों लगातार शोषण और छीनाझपटी का इतिहास रहा है जिसके बीच में जब-तब विद्रोह और अर्थव्यवस्था भी फैली है।
iii) आदिवासियों को संरक्षण की आवश्यकता :- उन्होंने कहा कि आदिवासी कबीले संख्या की दृष्टि से अल्पसंख्यक नही है लेकिन उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।
iv) शेप समाज द्वारा उन्हें हिकारत (दिन) की नजर से देखना :- उन्हें वहाँ से बेदखल कर दिया गया रहते थे। उनके जंगलों और चारागाहों से वंचित कर दिया गया, उन्हें नए घरों की तालाश में भागने के लिए मजबूर किया गया। उन्हें आदिम और पिछड़ा मानते हुए शेष समाज उन्हें हिकारत की नज़र से देखता था।
v)आदिवासियों और शेष समाज के बीच मौजूद भावनात्मक और भौतिक फासले को खत्म करना :- जयपाल सिंह ने आदि वासियों और शेष समाज के बीच मौजूद भावनात्मक और भौतिक फासले को खत्म करने लिए बड़ा जज़बाती बयान दिया । "हमारा कहना है कि आपको हमारे साथ घुलना - मिलना चाहिए। हम आपके साथ मेलजोल चाहते है।"
(vi)विधायिका में आदिवासियों को आरक्षण की व्यवस्था :- जयपाल सिंह पृथक निर्वाचिका के हक में नहीं थे लेकिन उनको भी लगता था कि विद्यायिका में आदिवासियों को प्रतिनिधि प्रदान कसे के लिए सीटों के आरंक्षण की व्यवस्था जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस तरह औरों को आदिवासियों की आवाज़ सुनेन और उनके पास आने के लिए मजबूर किया जा सकेगा।
प्र .19 राज्यों के अधिकारों की सबसे शक्तिशाली हिमायत किसने और कैसे की थी ? स्पष्ट कीजिए।
उतर . राज्यों के अधिकारों की सबसे शक्तिशाली हिमायत मद्रास के सदस्य के० सत्तनम ने की थी।
ⅰ) उन्होंने कहा कि न मजबूत है। केवल राज्यों को बल्कि केन्द्र को मजबूत बनाने के लिए भी शक्तियों का पुनर्वितरण जरूरी " यह दलील एक ज़िद - सी बन गई है कि तमाम शक्तियों केन्द्र को सौंप देने से वह मजबूत हो जाएगा।" सन्तनम ने कहा कि यह गलतफहमी है।
ⅱ) अगर केन्द्र के पास जरूरत से ज्यादा जिम्मेदारियों होगी तो वह प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाएगा।
iii) उसके कुछ दायित्वों में कमी करने से और उन्हें राज्यों को सौंप देने से केन्द्र ज्यादा मजबूत हो जाएगा।
iv) जहाँ तक राज्यों का सवाल है, सन्तनम का मानना था कि शक्तियों का मौजूद वितरण अको पंगु बना देगा। राजकोषीय प्रावधान प्रांतो को खोखला कर देगा क्योंकि भूराजस्व के अलावा ज्यादातर पर केन्द्र सरकार के अधिकार में दे दिए गए है। यदि पेसा हीं नहीं होगा तो राज्यों में विकास परियोजनाएँ कैसे चलेंगी।
v)मैं ऐसा संविधान नही चाहता जिसमें इकाई को आकर्षक केन्द्र से यह कहना पड़े कि 'मैं अपने लोगों की शिक्षा की व्यवस्था नही कर सकता।
vi) में उन्हें साफ-सफाई नही दे सकता, मुझे सड़कों में सुध उद्योगों की स्थापना के लिए खैरात दे दीजिए।
vii) बेहतर होगा कि हम संघीय व्यवस्था को पूरी तरह खत्म कर दे और एकल व्यवस्था स्थापित करें।"
viii) सन्तनम ने कहा कि अगर पर्याप्त जाँच-पड़ताल किए बिना शक्तियों का प्रस्तावित वितरण लागू किया गया तो हम भविष्य अंधकार में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि कुछ है सालों में सोर प्रांत "केन्द्र के विरुद्ध" उठ खड़े होंगे।
प्र 20. अधिकतर संविधान सभा के सदस्यों ने एक मजबूत केन्द्र सरकार की माँग क्यों की थी ?
उतर. अम्बेडकर ने घोषणा की थी कि वह "एक शक्ति शाली और एकीकृत केन्द्र" चाहते हैं; "1935 के गवर्नमें एक्ट में हमने जो केन्द्र बनाया था उससे भी ज्यादा शक्तिशाली केन्द्र"।
ⅱ) सड़को पर हो रही जिस हिंसा के कारण देश टुकड़े टुकड़े हो रहा था, उसका हवाला देते हुए बहुत सारे सदस्यों ने बार तो- बार यह कहा कि केन्द्र की शक्ति में भारी इज़ाफा होना चाहिए ताकि वह सांप्रदायिक हिंसा को रोक सकें।
iii) प्रांतों के लिए अधिक शक्तियों की मांग का जवाब देते हुए गोपालस्वामी अय्यर ने जोर देकर कहा कि के ज्यादा से ज्यादा मजबूत सेना चाहिए।" ज्यादा
iv) संयुक्त प्रांत के एक सदस्य बालकृष्ण शर्मा ने विस्तार से इस बात पर पक्ष रखा कि एक शक्तिशाली केन्द्र का होना है जरूरी है ताकि वह देश के हित मे योजना बना सके, उपलब्ध आर्थिक संसाधनों को जुटा सके, एक उचित शासन व्यवस्था कर सके और देश को विदेशी आक्रमण से बचा सकें।
v) औपनिवेशिक शासन व्यवस्था द्वारा थोपी गई एकल व्यवस्था पहले से ही मौजूद थी। उस जमाने में हुई घटनाओं से केन्द्रीयतावाद को बढ़ावा मिला जिसे अब अफरा-तफरी पर अंकुश लगाने तथा देश के लिए और भी जरूरी माना जाने लगा।
प्र .21 हिन्दी भारत की राष्ट्रीय भाषा कैसे बनी ? स्पष्ट कीजिए
उतर. तीस के दशक तक कांग्रेस ने यह मान लिया था कि हिन्दुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया जाय। महात्मा गाँधी का मानना था कि हरेक को एक ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे लोग आसानी से समझ सकें।
ii) हिंदी और उर्दू के मेल से बनीं हिन्दुस्तानी भारतीय जनता के बहुत बड़े हिस्से की भाषा थी और यह विविध संस्कृतियों के आदान - प्रदान से समृद्ध हुई एक साझी भाषा थी। जैसे - जैसे समय बीता, बहुत तरह के स्रोतों से नए-नए शब्दों और अर्थ इसमें समाते गए और उसे विभिन्न क्षेत्रों के बहुत सारे लोग समझने लगे।
iii) महात्मा गाँधी को लगता था कि यह बहुसांस्कृतिक भाषा विविध समुदायों के बीच संसार की आदर्श भाषा हो सकती है वह हिन्दुओं और मुसलममों को, उत्तर और दक्षिण के लोगों के एकजुट कर सकती है।
iv) लेकिन उन्नीसवीं सदी के आखिर से एक भाषा के रूप में हिन्दुस्तानी धीरे-धीरे बदल रही थी। जैसे-जैसे सांप्रदायिक टकराव गहरे होते जा रहे थे, हिन्दी और उर्दू एक-दूसरे से दुर जा रही थी। एक तरफ तो फारसी और अरबी मूल के सारे शब्दों को संस्कृतनिष्ठ बनाने की कोशिश की जा रह थी।
v) दूसरी तरफ उर्दू लगातार फारसी के नजदीक होती जा रही र्थ नतीजा यह हुआ कि भाषा भी धार्मिक पहचान की राजनीति का हिस्सा बन गई । लेकिन हिन्दुस्तानी के साझा चरित्र में महात्मा गाँधी की आस्था कम नही हुई।
प्र 22. आर• वी• धुलेकर ने हिन्दी की हिमायत किस प्रकार की थी?
उतर.i) संविधान सभा के शुरुआती सत्र में संयुक्त प्रांत के कांग्रेसी सदस्य आर. वि. धूलेकर इस बात के लिए पूरजोर शब्दों में आवाज उठाई धुलेकर थी कि हिन्दी को संविधान निर्माण की भाषा के रूप में इस्तेमाल किया जाय।
ⅱ) जब किसी ने कहा कि सभा के सभी सदस्य हिंदी नही समझते तो धुलेकर ने पलटकर कहा कि, "इस सदन में जो लोग भारत का संविधान रचने बैठे है और हिन्दुस्तानी नही जाने वे इस सभा की सदस्यता के पात्र नहीं है। उन्हें चले जाना चाहिए।"
iii) जब इन टिप्पणियों के कारण सभा में हंगामा खड़ा हुआ तो धुलेकर हिन्दी में अपना भाषण देते रहे। जवाहर लाल नेहरू के हस्तक्षेप के चलते आखिरकार सदन में शांति बहाल हुईं।
iv) लेकिन भाषा का सवाल अगले तीन साल तक संविधान सभा की कार्यवाहियों में बाधा डालता रहा और सदस्यों को उत्तेजित करता रहा।
v) तकरीबन 3 साल बाद 12 सितंबर 1947 को राष्ट्र की भाषा के सवाल पर धुलेकर के भाषण ने एक बार फिर तूफान खड़ा कर दिया। तब तक संविधान सभा की भाषा समिति अपनी रिपोर्ट पेश कर चुकी थी।
vi) समिति ने सुझाव दिया कि देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी भारत की राजकीय भाषा होगी। परंतु इस फार्मूले को समिति ने घोषित नही किया था। समिति का मानना था कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए।
vii) धुलेकर बीच-बचाव की ऐसी मुद्रा में राजी होने वाले नही थे । वे चाहते थे कि हिन्दी को राजभाषा नही बल्कि राष्ट्रभाषा घोषित किया जाए।
viii) उन्होंने ऐसे लोगों की आलोचना की जिन्हें लगता था कि हिन्दी को उन पर थोपा जा रहा है। धुलेकर ने ऐसे लोगों का मजाक उड़ाया जो महात्मा गांधी का नाम लेकर हिन्दी की बजाय हिन्दुस्तानी की राष्ट्रीय भाषा बनाना चाहते है।
प्र.23. भाषा के रूप में हिन्दी वर्चस्व का भय संविधान को क्यों सता रहा था? स्पष्ट कीजिए ।
उतर.(i) श्रीमति दुर्गाबाई ने बताया कि दक्षिण में हिन्दी का विरोध बहुत ज्यादा है: "विरोधियों का यह मानना है कि हिन्दी के लिए हो रहा यह प्रचार प्रांतीय भाषाओं की जड़ें खोदने का प्रयास है....."
ii) इसके बावजूद बहुत सारे अन्य सदस्यों के साथ - साथ उन्होंने भी महात्मा गांधी के आदेश का पालन किया, और दक्षिण में हिन्दी का प्रचार जारी रखा, विरोध का सामना किया, हिन्दी के स्कूल खोलें और कक्षाएं चलाई।
iii) दुर्गाबाई ने पुछा सदी के शुरुआती सालों में हमने जिस उत्साह से हिन्दी को अपनाया था, मैं उसके विरुद्ध यह आक्रामकता देखकर सकते में हूँ। "
iv) दुर्गाबाई हिन्दुस्तानी की जनता की भाषा स्वीकार कर चुकी थी मगर अब उस भाषा को उससे निकाला जा रहा था, उर्दू तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों को उससे निकाला जा रहा था।
v) उनका मानना था कि हिन्दुस्तानी के समावेशी और साझा स्वरूप को कमज़ोर करने वाले किसी भी कदम से विभिन्न भाषायी समूहों के बीच बैचेनी और भय पैदा होना निश्चित है।
vi) बम्बई के एक सदस्य श्री शंकरराव देव ने कहा कि कांग्रेसी तथा महात्मा गाँधी का अनुयायी होने के नाते हिन्दुस्तानी को राष्ट्र की भाषा के रूप में स्वीकार कर चुके हैं।
vii) परंतु उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा: "अगर आप (हिन्दी, के लिए) दिल से समर्थन चाहते हैं तो आपको ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे मेरे भीतर संदेह पैदा हो और मेरी आंशकाओं को बल मिले।"
viii) मद्रास के श्री. टी. ए. रामलिंगम चेट्टियार ने इस बात पर जोर दिया कि जो कुछ भी किया जाय, एहतियात के साथ किया जाय। यदि आक्रमकता होकर काम किया गया तो हिन्दी का कोई भुला नहीं हो पाएगा। चाहे लोगों के भय निराधार हैं, उनको शांत किया जाना चाहिए वरना "लोगों में गहरी करवाहट रह जाएगी।"
ix) उन्होंने कहा, "जब हम साथ रहना चाहते है और एक एकीकृत राष्ट्र की स्थापना करना चाहते है तो परस्पर समायोजन होना ही चाहिए और लोगों पर चीजे थोपने का सवाल नहीं उठाना चाहिए...।"
प्र 24. संविधान के एक केन्द्रिय अभिलक्षण पर काफी हद तक सभा के सदस्यों की सहमति क्यों थी ?
उतर.ⅰ) क्योंकि इसके पीछे एक खास किस्म का भरोसा था जिसके पहले यह उदाहरण किसी अन्य देश के इतिहास में नहीं था।
ⅱ) दूसरे लोकतंत्रों में पूर्ण व्यस्क मताधिकार धीरे-धीरे कई चरणों से गुजरते हुए, लोगों को मिला।
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