12 CLASS NOTES CHAPTER 2 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र


प्र. सन् 1878 के दिसंबर में किसने ‘ओपेन डोर’ की नीति चलायी?

उ. देंग श्याओपिंग ने।

प्र. मार्शल योजना से हम क्या समझते हैं?

उ. अमेरिका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्ती मदद की। जिसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है।

प्र. यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना कब हुई थी?

उ. सन‌ 1948 में।

प्र. यूरोपियन इकाँनामिक कम्युनिटी का गठन कब हुआ था?

उ. 1957 में।

प्र. यूरोपीय संघ की स्थापना कब हुई थी?

उ.1992 में।

प्र.यूरोपीय संघ का कौन सा प्रभाव बहुत जबरदस्त है?

उ. यूरोपीय संघ का आर्थिक राजनीतिक,कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है।

प्र. यूरोपीय संघ के कौन से दो सदस्य देश सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं?

उ. ब्रिटेन और फ्रांस।

प्र. यूरोपीय संसद के लिए पहला प्रत्यक्ष चुनाव कब हुआ था?

उ.1979

प्र. आसियान क्या है?

उ. आसियान दक्षिण पूर्ण एशियाई राष्ट्रों का संगठन है।

प्र. आसियान की स्थापना कब और किन पांच देशों ने मिलकर की थी?

उ. आसियान की स्थापना 1967 मे हुईं।इस क्षेत्र के 5 देशों ने बैंकॉक घोषणा पर हस्ताक्षर करके ‘आसियान' की स्थापना की। ये देश इंडोनेशिया, मलेशिया,फिलिपीस, सिंगापुर और थाईलैंड ने मिलकर की थी।

प्र. आसियान का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उ. आसियान का मुख्य उद्देश्य आर्थिक विकास को तेज करना और उस के माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को हासिल करना है।

प्र. आसियान शैली क्या है?

उ. अनौपचारिक टकरावरहित और सहयोगात्मक मेल मिलाप का नया उदाहरण पेश करके आसियान ने काफी यश कमाया है। और इसीलिए इसकी इसको आसियान शैली भी कहा जाता है।

प्र. सन 1994 में आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना क्यों की गई?

उ. आसियान के देशों की सुरक्षा और विदेश नीतियों में तालमेल बनाने के लिए 1994 में आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना की गई थी।

प्र. आसियान विजन-2020 की मुख्य बातें क्या है?

उ. आसियान विजन-2020की मुख्य बातें निम्न है।

1. आशियाना तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है।इसके विजन दस्तावेज 2020 में अंतरराष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका की प्रमुखता दी गई है।

2. आसियान द्वारा अभी टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति से ही है बात निकली है।

3. इसी तरकीब से आसियान ने कंबोडिया के टकराव को समाप्त किया पूर्वी तिमोर के संकट को संभालना है। और पूर्व एशियाई सहयोग पर बातचीत के लिए 1999  से नियमित रूप से वार्षिक बैठक आयोजित की गई है।

प्र. भारत में किन दो आसियान सदस्य देशों के साथ मुक्त व्यापार का समझौता किया है?

उ. भारत ने दो आसियान सदस्य देश सिंगापुर और थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार का समझौता किया है।

प्र.भारत नें ‘पूरब की ओर चलो' की नीति कब अपनाई थी?

उ.सन् 1991 मे ।

प्र. चीन के साथ भारत के संबंधों का वर्णन कीजिए?

उ. प्रस्तावना:- पश्चिमी साम्राज्य के उदय के पहले भारत और चीन एशिया की महाशक्ति थे। चीन का अपने आसपास के इलाकों में काफी प्रभाव था। और आसपडोस के छोटे देश इससे पूर्व प्रभुत्व को मानकर और कुछ सहानुभूति देकर चैन से रहा करते थे। भारत हो या चीन इनका प्रभाव सिर्फ राजनीतिक नहीं था।चीन भारत अपने प्रभाव क्षेत्र के मामले में कभी भी टकराए नहीं थे। इसी कारण दोनों के बीच राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रत्यक्ष संबंध सीमित ही थे।परिणाम यह हुआ कि दोनों देश एक दूसरे को ज्यादा समझ नहीं पाए और 20 सदी में दोनों देश एक दूसरे से टकराए तो दोनों को ही एक दूसरे के प्रति विदेश नीति विकसित करने में मुश्किल आई।

ब्रिटिश शासन के बाद भारत चीन संबंध:- अंग्रेजों से मुक्ति पाने और चीन द्वारा विदेशी शक्तियों को निकाल कर बाहर करने के बाद या उम्मीद जारी थी कि यह दोनों मुल्क साथ आकर विकासशील दुनिया और खासतौर से एशिया के भविष्य को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। कुछ समय के लिए दोनों रिश्ते भी अच्छे थे। यही कारण है कि दोनों के लिए ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ का नारा प्रसिद्ध हुआ। परंतु यह नारा ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया और सीमा विवाद पर चले सैन्य संघर्ष ने दोनों की उम्मीदों को समाप्त कर दिया।

आजादी तुरंत बाद सन 1950 में चीन द्वारा तिब्बत को हड़पने तथा भारत चीन सीमा पर बस्तियां बनाने के फैसले से दोनों देशों के बीच संबंध एकदम गड़बड़ गड़बड़ आ गया भारत और चीन दोनों मुल्क अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और लद्दाख के अक्साई चीनी क्षेत्रों पर प्रतिस्पर्धी दावो के चलते 1962 में एक दूसरे से लड़ पड़े।

भारत चीन युद्ध के बाद दोनों के संबंध:-सन् 1962 के युद्ध में भारत को सैनिक पराजय झेलनी पड़ी और भारत और चीन संबंधों पर इसका दीर्घकालीन असर हुआ। देखा जाए तो 1967 तक दोनों देशों के कूटनीति संबंध एक तरह से समाप्त ही रहे। परंतु उसके बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार शुरू हुआ। 1970 के बाद चीन का राजनीतिक नेतृत्व बदला।

चीन की नीति में भी अब वैचारिक मुद्दों की जगह व्यवहारिक मुद्दे प्रमुख होते गए इसलिए इस दोनों देशों के बीच के संबंध लगातार सुधरने सुधरे।

1981 में सीमा विवाद को दूर करने के लिए वार्ताओ की श्रृंखला भी शुरू की गई।

राजीव गांधी के काल में भारत -चीन के संबंध:-दिसंबर 1984 को भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन के दौरे पर गए इससे भारत और चीन के संम्बन्धों को सुधारने के प्रयासों को बढ़ावा मिला। इसके बाद से ही दोनों देशों के संम्बन्धों लगातार सुधरते गए। और सीमा पर शांति और यथास्थिति बनाए रखने के उपयोग की शुरुआत की गई।

दोनों देशों के बीच तकनीक संस्कृतिक आदान-प्रदान आदि चीजों साझा की गई। और इसके लिए कई समझौता भी हुए।

भारत चीन के संबंध शीतयुद्ध के बाद:-शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद दोनों देशों के संबंध के बीच महत्वपूर्ण बदलाव आए।अब इसके संबंध का राजनीतिक ही नहीं बल्कि आर्थिक पहलू भी है।

 दोनों ही खुद को विश्व राजनीति की उभरती शक्ति मानते हैं और दोनों ही एशिया की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहेंगे।

निष्कर्ष:-दोनों ही देश आज एशिया की सबसे बड़ी आर्थिक और राजनीतिक शक्ति है। दोनों ही देशों की स्थिति शुरू से लगभग एक जैसी है परंतु चाइना ने जिस तरह आपनी अर्थव्यवस्था का विकास किया जिसके पश्चिमी देश न चाह कर भी चाइना की तरफ झुके हैं परंतु समय-समय पर दोनों देश एक दूसरे के विरोधी भी रहे हैं।दोनों ही देशों को एक दूसरे का विरोध भूलकर एक दूसरे की तरक्की के बारे में सोचना चाहिए।

प्र.चीन का कौन सा शहर ‘नई आर्थिक शक्ति' का प्रतीक है?

उ.शंघाई

प्र. यूरोपीय संघ का झंडा किसका प्रतीक है?

उ. सोने के रंग के सितारों का घेरा यूरोप के लोगों की एकता और मेल-मिलाप का प्रतीक है। इसमें 12 सितारे हैं क्योंकि बाहर की संख्या को वहां परम पारीक रूप से पूर्णता, समग्रता और एकता का प्रतीक माना जाता है।

प्र.यूरोपीय संघ के किन्हीं दो पुराने सदस्यों के नाम बताओ?

उ.स्वीडन, पुर्तगाल और फ्रांस 

प्र.यूरोपीय संघ का आर्थिक,राजनीतिक,कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव बहुत जबरदस्त है। इस कथन के पक्ष में उत्तर दीजिए?

उ. यूरोपीय संघ का आर्थिक राजनीतिक,कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव निम्न कारणों से जबरदस्त है।

1. सन 2005 में यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और इसका सकल घरेलू उत्पादन 12000 अरब डालर से ज्यादा था। जो अमेरिका से भी थोड़ा ज्यादा था। इसकी मुद्रा यूरो अमेरिका डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन सकती है।

2. विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी अमेरिका से 3 गुना ज्यादा है और इसी से इसी के चलते यह अमेरिका और चीन से व्यापारिक विवादों में पूरी धौस के साथ बात करता है। इसकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव इसके नजदीकी देशों पर ही नहीं बल्कि एशिया और अफ्रीका के दूर-दराज के मुल्कों पर भी है।

3. यहां विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठनों के अंदर तक महत्वपूर्ण समूह के रूप में काम करता है।यूरोपीय संघ के 2 सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य हैं।

4. यूरोपीय संघ के कई और देश सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं।इसके चलते यूरोपीय संघ अमेरिका समेत सभी मूल्को की नीतियों को प्रभावित करता है।

5. सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसका कुल रक्षा बजट अमेरिका के बाद सबसे अधिक हैं। यूरोपीय संघ के 2 सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं।

6. एक अनुमान के अनुसार इनके जखीरे हथियार भंडार के में करीब 550 परमाणु हथियार हैं। अंतरिक्ष विज्ञान और संचार प्रौद्योगिकी के मामले में भी यूरोपीय संघ का दुनिया में दूसरा स्थान है।

 यह सभी चीज यूरोपीय संघ को एक महत्वपूर्ण शक्तिशाली राष्ट्र बनाते हैं।

प्र. आसियान की स्थापना कब और किन पांच देशों ने मिलकर की थी?

उ. आसियान की स्थापना 1967 में इंडोनेशिया मलेशिया, फिलिपीस,सिंगापुर और थाईलैंड ने की थी।

                   चीन का इतिहास :

चीन दक्षिण एशिया का देश ना होते हुए भी एशिया का महत्वपूर्ण देश है। इस देश ने अपने शुरुआती दिनों में कई संघर्षों का सामना किया।

 रही बात चीन के भारत के साथ संबंधों की बात करें तो यह देश भारत की विदेश नीति का एक अहम हिस्सा है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले और बाद में इनके संबंध अच्छे और मधुर रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई विकास पूर्ण नीतियों में चीन ने भारत का कदम कदम पर साथ दिया है परंतु जब 1947-48 में पाकिस्तान के कबायलियो ने जम्मू और कश्मीर पर आक्रमण किया तथा घुसपैठ की तो चीन ने इस इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की इसलिए इस दौर में दोनों के संबंधों में खटास उत्पन्न हो गई।

सन् 1947 के वक्त चीन में साम्यवादियों का कब्जा हो गया था। तथा कह सकते हैं कि चीन एक साम्यवादी देश के रूप में पहचाना जाने लगा था

1 अक्टूबर 1949 को चीन ‘चीनी क्रांति' के दौरान साम्यवादियों के नेतृत्व में एक चीनी साम्यवादी गणराज्य की नींव रखी गई। चीनी क्रांति के बाद दोनों देशों ने अपने संबंधों की सुधारने के भरपूर प्रयास किया इन्ही  प्रयासों में से एक पंचशील समझौता पर दोनों देशों का सहमत था।

                     पंचशील समझौता

29 अप्रैल 1950 को भारत के प्रधानमंत्री 'पंडित जवाहर लाल नेहरू’और चीन के प्रधानमंत्री ‘चाऊ-एन लाई'के बीच दिल्ली में एक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन को पंचशील समझौता के नाम से जाना जाता है। 8 वर्षों के लिए किया गया था।

भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता:- इस समझौते के तहत भारत और चीन के बीच में पांच मुद्दों पर सहमति बनी थी।

1. एक दूसरे की अखण्डता और संप्रभुता के लिए पारस्परिक सम्मान की भावना पर अमल करेंगे।

2. एक दूसरे पर आक्रमण नहीं करेंगे।

3. एक दूसरे के आंतरिक मामलों में  हस्तक्षेप ना करना।

4. हमेशा एक दूसरे के प्रति समानता और मित्रता की भावना रखेंगे।

5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व बनाए रखना।

*पंचशील समझौते के बाद इन दोनों देशों के संबंध को एक नई दिशा मिली। इस समझौते के बाद यह दोनों देश ना केवल एक दूसरे पर भरोसा करते थे बल्कि एक की समस्या को दूसरा अपनी समस्या मानता था।इन दोनों की इस दौर घनी मित्रता के कारण ही एक जुमला प्रसिद्ध हुआ था जिसे हिंदी चीनी भाई भई कहा जाता है

परंतु इन दोनों की दोस्ती ज्यादा दिनों तक ना चल सकी। सन 1962 में जब आधी रात को संपूर्ण भारतीय जनता सो रही थी तब चीन ने भारत के नॉर्थ ईस्ट के क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश और उत्तरी हिस्सा जम्मू और कश्मीर में लद्दाख के पास आक्रमण कर दिया। अचानक हुए हमले में भारत को मुंह की खानी पड़ी।

परंतु भारत के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात था नेहरू जी इस हमले से संपूर्ण रूप से टूट गए और इसके बाद लगातार बीमार रहने लगे 2 साल बाद यानी 1964 में उनकी मृत्यु हो गई।

इनकी मृत्यु के बाद इन दोनों देशों के संबंध में बड़ा बदलाव देखा गया। इस हमले के बाद इन देशों ने अलग तरह से अपनी विदेश नीति तय की तथा चीन पर पंचशील सील के उल्लंघन का आरोप लगाया।

चीनी अर्थव्यवस्था का उत्थान:-चीनी क्रांति के बाद यानी चीन के क्रांति 1949 के बाद चीन करीब दो दशक तक आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए जूजता रहा। परंतु जब 1978 में चीन ने ओपन डोर पोलिसी(निती) अपनाई तो चीन की आर्थिक सफलता को एक महाशक्ति के रूप में इसके उभरने के साथ देखा गया था।

आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने के बाद से चीन सबसे ज्यादा तेजी से आर्थिक वृद्धि कर रहा है, और माना जाता है कि अगर चीन इसी तरह अपना आर्थिक विकास करता रहा तो 1 दिन दूर नहीं जब चीन आर्थिक शक्ति के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ देगा।

*चीनी अर्थव्यवस्था के उत्थान का दूसरा कारण खेती का निजी कारण रहा है:-

हां यह बात सत्य है कि चीन की अर्थव्यवस्था के उत्थान में कृषि का महत्वपूर्ण योग्य रहा है। इसने खेती से पूंजी निकालकर सरकार के नियंत्रण में बड़े उद्योग खड़े करने पर जोर जोर दिया था।

ऐसा चीन ने इसलिए किया क्योंकि चीन के पास विदेशी मुद्रा के भंडार की कमी थी।इसी कारण चीन विदेशी बाजारों से तकनीक और समानों की खरीद के लिए सक्षम नहीं हो पा रहा था। इसलिए चीन ने धीरे-धीरे घरेलू स्तर पर ही समानों को तैयार करना शुरू कर दिया। चीन औद्योगिक अर्थव्यवस्था खाडा करने के लिए अपने सारे संसाधनों का प्रयोग किया सभी नागरिकों को  रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के दायरे में लाया गया। और अपने नागरिकों की शिक्षित करने और उन्हें स्वतंत्रता सुविधाएं उपलब्ध कराने के मामले में चीन सबसे विकसित देश से भी आगे निकल गया।

*चीन की अर्थव्यवस्था का विकास भी 5 से 6 फीसदी की दर से हुआ लेकिन जनसंख्या में 2-3 फ़ीसदी की वार्षिक वृद्धि इस विकास दर पर पानी फेर रही थी। और बढ़ती आबादी विकास के लाभ से वंचित रह जा रही थी।

*चीन ने 1982 में खेती का निजीकरण किया और फिर उसके बाद सन् 1998 में उद्योग का व्यापार संबंधी अवरोधों कि सिर्फ विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए ही हटाया गया है। जहां विदेशी निवेशक अपने उधम लगा सकते हैं।

*नई आर्थिक नीतियों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था को अपनी मुसीबत से उबरने में मदद मिली। कृषि के निजीकरण के कारण कृषि उत्पादों तथा ग्रामीण आय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई।

*व्यापार में नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों SEZ के निर्माण से विदेश व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। चीन पूरे विश्व में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश FDI के लिए सबसे  आकर्षक देश बनकर उभरा।

*चीन के पास विदेशी मुद्रा का विशाल भंडार है और इसके दम पर चीन दूसरे देशों में निवेश कर रहा है।चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया। जो इसकी शक्ति का एक प्रतीक माना जाता है।वास्तव में आज चीन विकास की ऊंची चोटी पर पहुंच गया है। जहां से नीचे गिराना लगभग असंभव है।

आसियान:-दक्षिण पूर्व एशिया राष्ट्रों का संगठन।

EEC:-यूरोपीय आर्थिक मुद्रा

SEZ:-स्पेशल इकोनामिक जोन 

chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

chapter 3.समकालीन विश्व में अमेरिका वर्चस्व