CBSE 12 CLASS POL SCIENCE CHAPTER 7 NOTES GLOBALISATIONN (वैश्वीकरण)

वैश्वीकरण वह पराक्रम है जिसमें हम अपने निर्णय को दुनिया को एक क्षेत्र में क्रियान्वित करते हैं, जो दुनिया के दुरवतर्ती क्षेत्र में व्यक्तियों और समुदायों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।

प्र.वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण को प्रभावित कर रहा है
उ. (1) भारत पर वैश्वीकरण का प्रभाव:-पूँजी,वस्तु,विचार और लोगों की आवाजाही का भारतीय इतिहास कई सदियों का है।औपनिवेशिक दौर में ब्रिटेन के साम्राज्यवाही मंसूबों के परिणाम स्वरूप भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यातक तथा बने बनाये सामानों का आयातक देश था। आजादी के बाद, ब्रिटेन के साथ अपने इन अनुभवों से सबक लेते हुए हमने फैसला किया कि दूसरे पर निर्भर रहने के बजाय  खुद सामान बनाया जाय। इससे कुछ क्षेत्रों में तरक्की हुई तो कुछ जरूरी क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य आवास और प्राथमिक शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितने के के हकदार थे। भारत में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी रही।

(2)भारत द्वारा बैश्वीकरण को अपनाना:- सन्1991
में नई आर्थिक नीति के अंतर्गत भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण को अपनाया। अनेक देशों की तरह भारत ने भी संरक्षण की नीति को त्याग दिया गया। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की समानता, विदेशी पुंजी के निवेश का स्वागत किया गण विदेशी प्रौद्योगिकी और कुछ विशेषज्ञों की सेवाएँ ली जा रही हैं। दूसरी और भारत ने औद्योगिक संरक्षण की नीति को त्याग दिया है। अब अधिकांश वस्तुओं के आयात के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य नहीं है। भारत स्वयं को  अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़  रहा है। भारत का निर्यात बढ रहा है लेकिन साथ ही साथ अनेक वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही है। लखों लोग बेरोज़गार है । कुछ लोग जो पहले धनी थे वे अधिक धनी हो रहे हैं और गरीबो की संख्या बद रही है।

 (3)भारत में वैश्वीकरण का प्रतिरोध:- वैश्वीकरण
की आलोचना केवल भारत में ही नही बल्कि संपूर्ण विश्व में हो रही है। वैश्वीकरणप के आलोचक कई तर्क देते हैं।

(क) वामपंथी राजनीतिक रुझान रखने वालों का तर्क है कि मौजूदा वैश्वीकरण विश्वव्पूंयापी पूंजी वाद की एक खास अवस्था है जो धनि को और ज्यादा धनी और गरीब को और ज्यादा गरीब बनती है।

(क) राज्य के कमजोर होने से गरीबों के हित की रक्षा करने की उसकी क्षमता में कमी आती है। वैश्वीकरण के दक्षिण पंक्ति आलोचक इसके राजनीतिक आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।

राजनीतिक प्रभाव:- राजनीतिक अर्थों में उन्हें राज्य के कमजोर होने की चिंता है। वे चाहते हैं कि कम से कम कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनि र्भरता और "संरक्षणवाद" का दौर फिर कायम हो।

सांस्कृतिक प्रभाव के रूप:- संस्कृतिक संदर्भ में इनकी चिंता है कि परंपरागत संस्कृति की हानि होगी और लोग अपने सदियों पुराने जीवन मूल्य तथा तौर तरीके से हाथ धो देंगे।

प्र.कौन सी बातें मौजूदा वैश्वीकरण को अनूठा बनाती है?

 उ. वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाहों की गति और इसके प्रसार का धरातल । ये दोनों बातें मौजूदा वैश्वीकरण को
अनूठा बनाती है ।

 वैश्वीकरण के कारण :- वैसे तो वैश्वीकरण के लिए कोई एक कारक जिम्मेवार नहीं फिर भी प्रौद्योगिकी अपने आप में एक महत्वपूर्ण कारक साबित हुआ है। इसमें कोई शक नहीं है कि टेलीग्राफ, टेलीफोन, और माइक्रोचिप के नवीनतम आविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के बीच संचार की क्रांति कर दिखायी है ।

शुरू-शुरू में जब छपाई (मुद्रण) की तकनीक आयी थी तो उसने राष्ट्रवाद की आधारशिला रखी। इसी तरह आज हम यह महसूस कर सकते हैं कि प्रौद्योगिकी का • प्रभाव हमारे सोचने के तरीके पर पड़ेगा।

विचार, पूँजी,वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही की आसानी प्रौधोगिकी में हुई तरक्की के कारण संभव हुई है। इन प्रवाहों की गति में अंतर हो संकता है। उदाहरण के लिए विश्व के विभिन्न भागों के बीच पूँजी और वस्तु की गतिशीलता लोगों की आवाजाही की तुलना में ज्यादा तेज और व्यापक होगी।

संचार-साधनों की तरक्की और उनकी उपलब्धता मात्र से वैश्वीकरण अस्तित्व में आया हो- ऐसी बात नहीं। यहाँ ज़रूरी बात यह है कि विश्व के विभिन्न भागों के लोग अब समझ रहे हैं, कि वे आपस में जुड़ डेहुए हैं। आज हम इस बात को लेकर सजग हैं कि विश्व के एक हिस्से में घटने वाली घटना का प्रभाव विश्व के दूसरे हिस्से में भी पड़ेगा। बर्ड 'फ्लू अथवा 'सुनामी' किसी एक राष्ट्र की हदों में सिमटे नहीं रहते । ये घटनाएँ राष्ट्रीय सीमाओं का जोर नहीं मानतीं। ठीक इसी • तरह जब बड़ी आर्थिक घटनाएँ होती हैं तो उनका प्रभाव उनके मौजूदा स्थान अथवा क्षेत्रीय परिवेश तक सीमित नहीं रहता है, बल्कि विश्व भर में महसूस किया जाता है।

प्र. उदाहरणों की सहायता से वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव को स्पष्ट कीजिए ?

उ. सरकार की ताकत में कमी:- सबसे सीधा और सरल विचार यह है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य की क्षमता यानी सरकारों को जो करना है उसे करने की ताकत में कमी आती है। पूरी दुनिया में कल्याणकारी राज्य की धारणा अब पुरानी पड़ गई हैं और इसकी जगह न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य ने ले ली है।

* बाज़ार आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओ को महत्व देवा:

वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव का सबसे ज्‌यादा असर सरकार के लोक कल्याणकारी कामों पर पड़ा है। राज्य अब कुछेक मुख्य कामों तक ही अपने आप को सीमित रखता है, जैसे कानून और व्यवस्था को बनाये रखना तथा अपने नागरिकों की सुरक्षा करना | इस तरह के राज्यो ने अपने को पहले के कई ऐसे लोक-कल्याणकारी कामों से खींच लिया है।जिनका लक्ष्य आर्थिक और सामाजिक-कल्याण होता था लोक कल्याणकारी राज्य की जगह अब बाजार आर्थिक और -सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख बिर्धारक है।

*वैश्केवीकरण  राजनीतिक प्रभाव का अर्थव्यवस्था और
विश्व बिरादरी पर प्रभाव:- पूरे विश्व में बहुराष्ट्रीय
निगम अपने पैर पसार चुके हैं और उनकी भूमिका बढ़ी है। इससे सरकारों के अपने दम पर फैसला करने की क्षमता में कमी आती है। इसी साथ एक बात और भी है। वैश्वीकरण से हमेशा राज्य की ताकत में कमी आती हो - ऐसी बात नहीं। राजनीतिक समुदाय के आधार के रूप में राज्य की प्रधानता को कोई चुनौती नहीं मिली है और राज्य इस अर्थ में आज भी प्रमुख है। विश्व की राजनीति में अब भी विभिन्न देशों के बीच मौजूदा पुरानी ईर्ष्या (दुश्मनी) और प्रतिद्वंदिता की दरवल है। राज्य कानून और व्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अपने अनिवार्य कार्यों को पूरा कर रहे हैं और बहुत सोच-समझकर अपने कदम उन्हीं दायरों से खींच रहे हैं जहाँ उनकी मर्जी हो । राज्य अभी भी महत्वपूर्ण बने हुए है।

*वैश्वीकरण के कारण राज्य की ताकत में इजाफा:-  कुछ मायनों में वैश्वीकरण के फलस्वरूप राज्य की बाकत में इजाफा हुआ है। अब राज्यों के हाथ में अत्यादिक प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसके बूते राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएं जुटा सकते हैं। इस सूचना के दम पर राज्य ज्यादा कारगर ढंग से काम कर सकते हैं। उनकी क्षमता बढ़ी है। कम नही हुई। इस प्रकार नई प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप . राज्य अब पहले से ज्यादा ताकतवर हैं।

प्र.वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव' का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उ. अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा निभाई गई भूमिका :- जैसे ही वैश्वीकरण के आर्थिक वैश्वीकरण का उल्लेख होता है, हमारा ध्यान IMF और WTO जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं तथा विश्व भर में आर्थिक नीतियों के निर्धारण में इनके द्वारा निभायी गई भूमिका पर जाता है। हालांकि वैश्वीकरण को इतने संकीर्ण बज़रिए से नहीं देखा जाना चाहिए। आर्थिक वैश्वीकरण में इन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अलावा भी कई खिलाड़ी शामिल है।

आर्थिक प्रवाह का तेज होना :- अमूमन जिस प्रक्रिया को आर्थिक वैश्वीकरण कहा जाता है। उसमें दुनिया के विभिन्न देशों के बीच आर्थिक प्रवाह तेज हो जाता है। कुछ आर्थिक प्रवाह स्वेच्छा से होते हैं जबकि कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और ताकतवर देशों द्वारा जबरन लादे जाते हैं। ये प्रवाह कई किस्म के हो सकते हैं, जैसे वस्तुओं, पूँजी, जनता अथवा विचारों का प्रवाह । वैश्वीकरण के चलते पूरी दुनिया में वस्तुओं के व्यापार में इजाफा हुआ है, अलग-अलग देश अपने यहाँ होने वाले आयात पर प्रतिबंध लगाते थे लेकिन अब ये प्रतिबंध कम हो गए हैं। ठीक इसी तरह दुनिया भर में पूंजी की आवाजाही अब कहीं कम प्रतिबंध है।

व्यावहारिक धरातल पर वैश्वीकरण :- व्यावहारिक
धरातल पर इसका अर्थ यह हुआ कि धनी देश के निवेशकर्ता अपना धन अपने देश की जगह कहीं और निवेश कर सकते हैं, खासकर विकासशील देशों में जहाँ उन्हें ज्‌यादा मुनाफा होगा। वैश्वीकरण के चलते अब विचारों के सामने राष्ट्र की सीमाओं की बाधा नहीं रही, उनका प्रवाह अबाध हो उठा हैं। इंटरनेट और कंप्यूटर से जुड़ी सेवाओं का विस्तार इसका एक उदाहरण है। लेकिन वैश्वीकरण के कारण जिस सीमा तक वस्तुओं और पूंजी का प्रवाह बढ़ा है उस सीमा तक लोगों की आवाजाही नहीं बढ़ सकी हैं। विकसित देश अपनी वीज़ा नीति के जरिए अपनी राष्ट्रीय सीमाओं को बड़ी सतर्कता से अमेध बनाए रखते हैं ताकि दूसरे देशों के नागरिक विकसित देशों में आकार कहीं उनके नागरिकों के नौकरी-धंधे न हथिया लें।

आर्थिक वैश्वीकरण के कारण बढ़ती जनमत गहराई :-आर्थिक वैश्वीकरण के कारण पूर्व विश्व में जनमत बडी गहराई से बँट गया है। आर्थिक वैश्वीकरण के कारण सरकारें कुछ जिम्मदारियों से अपने हाथ खींच रही हैं और इससे सामाजिक न्याय से सरोकार रखने वाले लोग चिंतित हैं। इनका कहना है कि आर्थिक वैश्वीकरण से आबादी के एक बड़े छोटे तबके को फायदा होगा जबकि नौकरी और जन- कल्याण के लिए सरकार पर आश्रित रहने वाले लोग बद‌हाल हो जाएंगे । इसलिए ऐसे लोगों
के लिए "सामाजिक सुरक्षा कवच' तैयार किया जाना चाहिए ताकि जो लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उन पर वैश्वीकरण के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके। दुनिया के अनेक आंदोलनों की मान्यता है कि सामाजिक सुरक्षा कवच' की बात अव्यावहारिक है और इतना भर उपाय पर्याप्त नहीं होगा ।

* आर्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं के समर्थकों का तर्क :- वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं के समर्थकों का तर्क है कि इससे समृद्धि बढ़ती है और 'खुलेपन के कारण ज्‌यादा से ज्‌यादा आबादी की खुशहाली बढ़ती है। व्यापार की बढ़ती से हर देश को अपना बेहतर कर दिखाने का मौका मिलता है। इससे पूरी दुनिया को फायदा होगा। इन लोगों का कहना है कि आर्थिक वैश्वीकरण अपरिहार्य है और इतिहास की धारा को अवरुद्ध करना कोई बुद्धिमानी नहीं। वैश्वीकरण के मध्यमार्गी समर्थकों का कहना है कि वैश्वीकरण ने चुनौतियाँ पेश की हैं और सजग-सचेत होकर पूरी बुद्धिमत्ता से इसका सामना किया जाना चाहिए।

प्र. उदाहरणों की सहायता से वैश्वीकरण के • सांस्कृतिक प्रभाव को स्पष्ट कीजिए ।
. सांस्कृतिक समरूपता :- वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को देखते हुए इस भय को बल मिला है कि यह विश्व की संस्कृतियो को खतरा पहुँचाएगी। वैश्वीकरण से यह होता है क्योंकि वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता ले आता है। सांस्कृतिक समरूपता का यह अर्थ नहीं कि किसी विश्व-संस्कृति के नाम पर दरअसल शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति लादी जा रही है। कुछ लोगों का तर्क है कि बर्गर अथवा नीली जीन्स की लोकप्रियता का नजदीकी रिश्ता अमरीकी जीवनशैली के गहरे प्रभाव से है क्योंकि राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभुखशाली संस्कृति कम ताकतवर सामाजों पर अपनी छाप छोड़ती है और संसार वैसा ही दीखता है जैसा ताकतवर संस्कृति इसे बनाना चाहती है।

अमरीकी शक्ति का संपूर्ण विश्व पर प्रभाव:- आज
संपूर्ण विश्व पर अमरीकी शक्ति का प्रभाव बहुत तेजी से बढ़ रहा है। जो यह तर्क देते हैं वे अक्सर दुनिया के 'मैक्डोनॉल्डीकरण की तरफ इशारा करते है। उनका मानना है किं विभिन्न संस्कृतिया अब अपने को प्रभुत्वशाली अमरीकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं। चूँकि इससे पूरे विश्व की संमृद्ध सांस्कृतिक धरोहर धीरे-२ खत्म होती है इसलिए यह केवल गरीब देशों के लिए ही नहीं बलिक समूची मानवता के लिए खतरनाक है।

 अमरीकी सास्कृतिक का नकारात्मक प्रभाव :-  इसके साथ-साथ यह मान लेना एक भूल है कि वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव सिर्फ नकारात्मक है।
संस्कृति कोई जड़ वस्तु नहीं होती। हर संस्कृति हर समय बाहरी प्रभावों को स्वीकार करते रहती है। कुछ बाहरी प्रभाव नकारात्मक होते हैं क्योंकि इससे  हमारी पसंदों में कमी आती है। कभी - २ बाहरी प्रभावी से हमारी पसंद नापसंद का दायरा बढ़ता है तो कभी इनसे परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोडे बिना, संस्कृति का परिष्कार होता है। बर्गर- मसाला- डोसा का विकल्प नहीं है इसलिए; बर्गर से वस्तुतः कोई 'खतरा नहीं है। इससे यह हुआ मात्र इतना है कि हमारे भोजन की पसंद में एक चीज और शामिल हो गई है।

अमरीकी संस्कृति का सकारात्मक प्रभाव :- अमरीकी संस्कृति को केवल नकारात्मक रूप में नहीं देखना चाहिए। क्योंकि इसकी संस्कृति का सकारात्मक प्रभाव भी पड़ा है। जैसे नीली भी हथकरघा पर बुने खादी के कुर्ते के साथ खूब चलती है। यहाँ हम बाहरी प्रभाव से एक अनूठी बात देखते हैं कि नीली जीन्स के ऊपर खादी का कुर्ता पहना जा रहा है। मज़ेदार बात तो यह है कि इस अनूठे पहरावे को अब उसी देश को निर्यात किया जा रहा है. जिसने हमें नीली जीन्स दी है। जीन्स के ऊपर कुर्ता पहने अमरीकियों को देखना अब संभव है।

 सांस्कृतिक वैश्वीकरण :-सांस्कृतिक समरूपता वैश्वीकरण का एक पहलू है तो वैश्वीकरण' से इसका उल्टा
प्रभाव भी पैदा हुआ है। वैश्वीकरण से हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होते जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक वै भिन्नीकरण कहते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि संस्कृतियों के मेलजोल में उनकी ताकत का सवाल गौण है परंतु इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि सांस्कृतिक प्रभाव एकतरफा नहीं होता।