CBSC NCERT CLASS 12 CHAPTER 7 जन आंदोलनों का उदय POL SCIENCE (SECOND BOOK)
CLASS 12 NCRT CHAPTER 7 जन आंदोलन का उदय pol science
जन आंदोलनों का उदय
जब सरकार व किसी भी संगठन की नीति लोगों के हितों को प्रभावित करती है व उनके विकास में बाधाएं डालती है तो जनता उन नीतियों के खिलाफ आंदोलन करती है जिसे जन आंदोलन कहते हैं।
Q. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत का पहला जन आंदोलन कौन सा था?
Ans. चिपको आंदोलन।
Q. चिपको आंदोलन कब शुरू हुआ था?
Ans. सन 1973 में
Q. चिपको आंदोलन से आप क्या समझते हैं?
Ans. सन 1973 में उत्तराखंड के एक गांव के स्त्री पुरुष एकजुट हुए और जंगलों की व्यावसायिक कटाई का विरोध किय। गांव के लोगों ने अपने विरोध को जताने के लिए एक नई तरकीब अपनाई। वह वृक्ष से चिपक कर आंदोलन करने का नई तरकीब अपनाई।
Q.आठवे दशक के शुरू में किन दो सबसे बड़ी और बहु - उद्देश्यीय परियोजनाओं का निर्धारण किया गया?
Ans.(1) सरदार सरोवर परियोजना
(ii) नर्मदा बचाओ आंदोलन
Q.सरदार सरोवर परियोजना क्या था?
Ans.इस परियोजना के अन्तर्गत एक बह उद्देश्यीय विशाल बाँध बनाने का प्रस्ताव है । बाँध समर्थकों का कहना है कि इसके निर्माण से गुजरात के एक बहुत बड़े हिस्से सहित तीन पड़ोसी राज्यों में पीने के पानी सिंचाई और बिजली के उत्पादन की सुविधा मुहैया कराई जा सकेगी तथा कृषि के उत्पादन में गुणात्मक बढ़ोतरी होगी।
Q.सरदार सरोवर परियोजना के कोई दो नकारात्मक प्रभाव बताइए?
Ans.(1) इस बाँध के निर्माण से संबंधित राज्यो के 245 गाँव डूब के क्षेत्र में आ रहे
(ii) इससे करीब 2,50,000 लाख लोगों को - पुनर्वास का सामना करना पड़ा।
Q.नर्मदा आंदोलन की विकास रेखा भारतीय राजनीति मे सामाजीक आंदोलन और राजनीतिक दलों के बीच निरंतर बढ़ती दूरी को बयान करती है? कैसे?
(i)नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं का गुजरात जैसे राज्यों में तीव्र विरोध हुआ है। परंतु अब सरकार और न्यायपालिका दोनों हो यह और स्वीकार करते हैं कि लोगों को 'पुर्नवास मिलना चाहिए। सरकार द्वारा 2003 में स्वीकृत राष्ट्रीय पुनर्वास नीति को निर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आंदोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। .
(ii)परंतु सफलता के साथ ही नर्मदा बचाओ आंदोलन को बाँध के निर्माण पर रोक लगाने की माँग उठाने पर तीखा विरोध भी झेलना पड़ा। आलोचकों का कहना है कि आंदोलन का अड़ियल रवैया विकास की प्रक्रिया, पानी की उपलब्धता और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है।
(iii)सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को बांघ का काम आगे बढ़ाने हिदायत दी है लेकिन साथ ही उसे यह भी आदेश दिया गया है कि प्रभावित लोगों का पुनर्वास सही ढंग से किया जाए। नर्मदा बचाओ आंदोलन दो से भी अधिक ज़्यादा दशकों तक चला और अभी भी जारी । आंदोलन ने अपनी माँग मुखर करने के लिए हरसंभव लोकतांत्रिक रणनीति का इस्तेमाल किया।
(IV)आंदोलन ने अपनी बात न्यायपालिका से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक से उठाई । आंदोलन की समझ की जनता के सामने मुखर करने के लिए नेतृत्व ने सार्वजनिक रैलियों तथा सत्याग्रह जैसे तरीकों का भी प्रयोग किया परंतु विपक्षी दलों सहित मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के बीच आंदोलन - कोई खास जगह नहीं बना पाया वास्तव में नर्मदा आंदोलन की विकास रेखा भारतीय राजनीति में सामाजिक आंदोलन और राजनीतिक दलों के बीच निरंतर बढ़ती दूरी को बयान करती है।
Q.क्या आंदोलन और विरोध की कार्रवाइयों से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है? अपने उत्तर की पुष्टि में उदाहरण दीजिए?
Ans.जन आंदोलन और विरोध की कार्रवाइयों से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है। जो निम्न वाक्यों से स्पष्ट होता है।
(i) आंदोलन और विरोध लोकतांत्रिक राजनीति को बेहतर ढंग से समझने में मदद करते है क्योंकि इनका उद्देश्य दलीय राजनीति की कमियों को दूर करना है?
(ii)विभिन्न सामाजिक समूहों के लिए ये आंदोलन अपनी बात रखने का बेहतर माध्यम होते है।
(iii)समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को एक सार्थक दिश देकर यह आंदोलन एक तरह से लोकतंत्र की रक्षा करते हैं।
(iv) यह आंदोलन जनता की जायज माँगों के प्रतिनिधि बनकर उभरे हैं और उन्होंने नागरिकों के एक बड़े समूह को अपने साथ जोड़ने में सफलता प्राप्त की है।
(v)जन आंदोलनों द्वारा लामबंद किए जाने वाले वर्ग व जनता साधारणतথা आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित और अधिकारहीन होती है। इसलिए रोज़ाना की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से उनकी समस्याएँ नहीं सुलझाई जातीं। अत: उनके लिए जन आंदोलन का सहारा लेना आवश्यक होता है। इससे लोकतंत्र में ऐसे वर्गों के हितों की रक्षा होती है और लोकतंत्र मजबूत होता है।
(vi) साधारणतया बड़ी परियोजनाओं जैसे बड़े बाँधों की योजनाओं का बुरा प्रभाव आदिवासी या ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ता है जिसकी ओर सरकार अधिक ध्यान नहीं देती। ऐसी परिस्थितियों में जन आंदोलन के द्वारा ही ऐसी आर्थिक नीतियों का विरोध संभव होता है। एक लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक का अधिकार है कि वह अपनी आवाज उठा सकता है ।
इस प्रकार जन आंदोलन व विरोध की कार्रवाइयों द्वारा लोकतंत्र मज़बूत होता है। परंतु इनका प्रभाव सीमित रहता है। क्योंकि यह आंदोलन एक ही मुद्दे को लेते हैं और एक ही वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह सभी वंचित वर्गों को एक साथ लेकर नहीं चल सकते।
Q. जन आंदोलन का इतिहास हमें लोकतांत्रिक राजनीतिक को बेहतर ढंग से समझने में मदद देता है। कैसे इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
Ans.(i) जन आंदोलन वह आंदोलन है जो विभिन्न सामाजिक वर्गों जैसे महिला,छात्र, दलित और किसानों के द्वारा अपनी आवश्यकताओं और मांगों को पूरा करवाने के लिए चलाए जाते हैं । गैर दलीय आंदोलन अनियमित ढंग से खड़े नहीं हो जाते
उन्हें समस्या के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए इन आंदोलनों का उद्देश्य दलीय राजनीति की खामियों को दूर करना था। इस रूप में, इन आंदोलन को देश की लोकतांत्रिक राजनीति के अहम हिस्से के तौर पर देखा जाना चाहिए।
(ii) सामाजिक आंदोलनों ने समाज के उनू नए वर्गो की सामाजिक - आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी दिक्कतों को चुनावी राजनीतिक के जरिए हल नहीं कर पा रहे थे। विभिन्न सामाजिक समूहों के लिए ये आंदोलन अपनी बात रखने का बेहतर माध्यम बनकर उभरे समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को एक सार्थक दिशा देकर इन आंदोलनों ने एक तरह से लोकतंत्र की रक्षा की है।
(iii) इन आंदोलनों के आलोचक अक्सर यह दलील देते हैं कि हड़ताल धरना और रैली जैसी सामूहिक कार्रवाइयों से सरकार
के कामकाज़ पर बुरा असर पड़ता है। उनके अनुसार इस तरह की गति विधियों से सरकार के निर्णय प्रक्रिया बाधित होती है तथा रोज़मर्रा की लोकतांत्रिक व्यवस्था भंग होती है।
(iv) जन आंदोलनों द्वारा लामबंद की जाने वाली जनता सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तथा अधिकारहीन वर्गों से संबंध रखती है । जन आंदोलनों द्वारा अपनाए तौर तरीकों से ज़ाहिर होता कि रोज़मर्रा की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में वंचित समूहों को अपनी बात कहने का पर्याप्त मौका नहीं मिलता था। इसी कारण ये समूह चुनावी शासन - भूमि से अलग जन-कार्रवाई और लामबंदी की रणनीति अपनाते हैं।
(v)आंदोलन का मतलब सिर्फ धरना-प्रदर्शन या सामूहिक कार्रवाई नहीं होता। इसके अन्तर्गत किसी समस्या से पीड़ित लोगों का धीरे-2 एकजुट होना और समान अपेक्षाओं के साथ एक ही मांग उठाना जरूरी है। इसके अतिरिक्त आंदोलन का एक काम लोगों को अपने अधिकारों को लेकर जागरूक बनाना भी है ताकि लोग यह समझें कि लोकतंत्र की समस्याओं से वे क्या क्या उम्मीद कर सकते है।
(vi)भारत के सामाजिक आंदोलन बहुत दिनों से जनता को जागरूखा' बनाने के इस काम में शामिल है। ऐसे में इन आंदोलनों ने लोकतंत्र को बाधा नहीं पहुँचायी बलिक उसका विस्तार हुआ। अतः आज जितने भी लोग हैं उन्हे अपने अधिकारों का सही महत्व पता है तभी वो इसका उल्लंघन होने पर - जन आंदोलन का सहारा लेते है ।, यह लोकतंत्र का सही मायने में ऑक्सीजन है। यह जन आंदोलन के मुख्य सबक हैं।
Q. सन 2002 में किस नाम से विधेयक पास हुआ था?
Ans. सन 2002 में "सूचना की स्वतंत्रता" नाम का एक विधेयक पारित हुआ था।
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