जयशंकर प्रसाद जी का जीवन परिचय|| Bibliography Of Jaishankar Prasad in Hindi ||

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय देखेंगे उनका जन्म स्थान उनकी रचनाएं उनकी भाषा शैली उनके साहित्य आदि और भी कई चीजे जानने गे।

 इस पोस्ट में हम कवि जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय देखेंगे उनका जन्म स्थान उनकी रचनाएं उनकी भाषा शैली उनके साहित्य आदि और भी कई चीजे जानने गे। 


जयशंकर प्रसाद जी का जीवन परिचय

उनका जन्म 1890 में काशी उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री देवी प्रसाद था। पिता और बड़े भाई की  मृत्यु के कारण उन्हें आठवीं कक्षा में ही विद्यालय छोड़कर व्यवसाय में उतरना पड़ा। उन्होंने घर पर ही रहकर ही हिंदी, संस्कृत एवं फारसी भाषा एवं साहित्य का अध्ययन किया,साथ ही वैदिक वांग्मय और भारतीय दर्शनक का भी ज्ञान अर्जित किया। वह बचपन से ही प्रतिभा संपन्न थे। 8-9 वर्ष की आयु में अमरकोश और लघु कौमुडी कंठस्थ कर लिया था जबकि 'कलाधर’ उपनाम के कवित और सवैया भी लिखने लगे थे।

नाम जयशंकर प्रसाद
जन्म            सन 1890 ईस्वी में
जन्म स्थान           काशी उत्तर प्रदेश
पिता का नाम            श्री देवी प्रसाद 
मृत्यु सन 1937 ईस्वी 
शैक्षणिक योग्यता अंग्रेजी फारसी उर्दू हिंदी और संस्कृत का अध्ययन
रुचि साहित्य,काव्य रचना, नाटक लेखन
लेखन शैली काव्य,कहानी ,उपन्यास, नाटक निबंध
भाषा भावपूर्ण और विचारात्मक
शैली  विचारात्मक, अनुसंधानात्मक इतिवृतात्मक   भावात्मक और चित्रात्मक
साहित्य में स्थान हिंदी नाटक में नई दिशा देने के लिए प्रसाद युग के निर्माता और हिंदी साहित्य में छायावाद आंदोलन के प्रवर्तक के रूप में मान्यता प्राप्त की गई।

जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कविताएं

आह! वेदना मिली विदाई

आह! वेदना मिली विदाई
मैंने भ्रमवश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई

छलछल थे संध्या के श्रमकण
आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण
मेरी यात्रा पर लेती थी
नीरवता अनंत अँगड़ाई

श्रमित स्वप्न की मधुमाया में
गहन-विपिन की तरु छाया में
पथिक उनींदी श्रुति में किसने
यह विहाग की तान उठाई

लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी
रही बचाए फिरती कब की
मेरी आशा आह! बावली
तूने खो दी सकल कमाई

चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर
प्रलय चल रहा अपने पथ पर
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर
उससे हारी-होड़ लगाई

लौटा लो यह अपनी थाती
मेरी करुणा हा-हा खाती
विश्व! न सँभलेगी यह मुझसे
इसने मन की लाज गँवाई

जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ

प्रसाद जी ने काव्य, नाटक, कहानी, उपन्यास और निबन्धों की रचना की। 

उनकी प्रमुख कृतियाँ का विवरण निम्न प्रकार है-

1. नाटक- प्रसाद जी के स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त, विशाख, ध्रुवस्वामिनी, कामना, राज्यश्री, जनमेजय का नागयज्ञ, करुणालय, एक घूँट आदि प्रसिद्ध नाटक है। प्रसाद जी के नाटकों में भारतीय और पाश्चात्य कला का सुन्दर समन्वय है। उनके नाटक भारतीय अतीत की सुन्दर झाँकी प्रस्तुत करते हैं। इनके नाटकों में राष्ट्र के गौरवमय इतिहास का सुन्दर और सजीव प्रतिबिम्ब है।

2. कहानी संग्रह- छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, इन्द्रजाल, प्रसाद जी की सफल कहानियों के संग्रह हैं। इनकी आकाशदीप और पुरस्कार कहानियाँ विशेष प्रसिद्ध हैं। इनकी कहानियों में मानव मूल्यों और भावनाओं का काव्यमय और अलंकृत चित्रण है।

3. उपन्यास- कंकाल, तितली और इरावती (अपूर्ण), प्रसाद जी ने अपने उपन्यासों में जीवन की वास्तविकता का चित्रण कर आदर्श की ओर उन्मुख किया है।

4. निबन्ध संग्रह- 'काव्यकला तथा अन्य निबन्ध।'

5. काव्य- चित्राधा,लहर झरना,प्रेम पथिक,आंसू कामायनी।

भाषा- प्रसाद जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली है। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। संस्कृत के शब्दों की बहुलता और भावों में गम्भीरता के कारण इनकी भाषा दुरूह हो गयी है। इनकी भाषा ने विषय के अनुरूप अपना स्वरूप गठित कर लिया है। इनकी कहानियों और उपन्यासों में इनकी सरल और व्यावहारिक भाषा के दर्शन होते हैं। इनकी भाषा में मुहावरे और विदेशी शब्दों का प्रयोग बहुत कम मिलता है। भावुक कवि होने के कारण इनके गद्य में भी काव्य की सी मधुरता और प्रवाह है।

हिंदी साहित्य में स्थान

प्रसाद जी एक ऐसी विभूति है जिसे पाकर  कोई भी भाषा और साहित्य स्वयं को गौरवान्वित समझेगा। इनकी कामायनी तुलसी के रामचरित्तमानस के बाद हिंदी साहित्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है। आचार्य नंद दुलारे वाजपेई ने लिखा है- भारत के इने गिने आधुनिक श्रेष्ठ साहित्यकारों में प्रसाद जी का पद सर्वोत्तम ऊंचा रहेगा। उन्होंने प्रबंध काव्य में भी चित्र प्रधान भाषा और लाक्षणिक शैली का सफलतापूर्वक प्रयोग करते हुए अपनी विलक्षण काव्य प्रतिभा  का परिचय दिया है।