History Chaper 4 विचारक, विश्वास और इमारतें Notes

Chapter-4 विचारक, विश्वास और इमारतें

 

              Chapter-4                      विचारक, विश्वास और इमारतें

बौद्ध और जैन धर्म:- बौद्ध धर्म की स्थापना गौतम बुध ने की थी।

*गौतम बुद्ध का इतिहास:- बुद्ध का जन्म 563 ई. पू. में कपिलवस्तु के लुंबनी नामक गांव में हुआ था जो नेपाल में स्थित ह इनके जन्म के आठवें दिन ही इनकी मां महामाया देवी की मृत्यु हो गई । इसके बाद उनका पालन पोषण सौतेली मां प्रजापति गौत्तामी ने की थी जो उनकी मौसी भी थी उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था और उन्होंने 29 वर्ष की उम्र में  ग्रह जीवन त्याग दिया था और ज्ञान की प्राप्ति पर निकल  गए थे 35 वर्ष की अवस्था में उन्हें बिहार के बोधगया में निरंजना नदी के तट के समीप पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई और इसी के बाद इन्हें बुद्ध के नाम से जाना गया ।

बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यूपी के बनारस के सारनाथ में पाली भाषा में दिया था। बुद्ध द्वारा दिया गया प्रथम उपदेश धर्मचक्रपवर्तन कहलाता है।

1). बुद्ध  के जन्म का प्रतीक →कमल

2). बुद्ध के ज्ञान का प्रतीक→ पीपल वृक्ष

3) .बुद्ध के मृत्यु का प्रतीक - स्तूप

• बुद्ध के प्रथम गुरू आलारकलाम थे।

• बुद्ध ने सबसे ज्यादा उपदेश श्रावस्ती में दिया था जो कौशल प्रदेश की राजधानी थी।

               "बौद्ध धर्म के  त्रिरत्न "

             1). बुद्ध  2). धम्म 3). संघ

बुद्ध भगवान की मृत्यु 483 ई. पू. में up के कुशीर नगर में 80 वर्ष की अवस्था हुई थी।

• बुद्ध की मृत्यु की परिघटना महापरिनिर्वाण कहलाती है।

• बौद्ध संघ में प्रवेश पाने को उपसंपदा कहा जाता है।

• बुद्ध के चार अनुआयी शासके थे।

ⅰ) बिंबिसार

ii) प्रिसेनजित

iii) अशक

iv)  उदयन (पाटलिपुत्रनगर की स्थापना की थी।)

• बौद्ध संघ में प्रवेश करने वाली प्रथम महिला उनकी सौतेली  माँ प्रजापति गौतमी थी।

                      "गौतम बुद्ध "

1.)वंश (शाक्य) 2.) वर्ण (छत्रीय) 3.) गौत्र (गौतम)

* जैन धर्म :-

1.)जैन साहित्य को आदम कहा जाता है

"जैनधर्म" (ऋषभदेव) J

i) प्रवर्तक ii) संस्थापक iii) तीर्थकर

2) जैन धर्म के 23 वें तीर्थकर पारशव नाथ थे।

3) जैन धर्म माना जाता है। का वास्तविक संस्थापक महावीर की

4) महावीर का जन्म 540 ई. पू. बिहार के वैशाली जिले के कुण्डग्राम में हुआ था।

• महावीर के विचार:- स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मनों से क्या लड़ना ? जो स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेंगे उन्हें आनंद की प्राप्ति होगी या मौक्ष की प्राप्ति होगी। 

• महावीर ने अपना गृह जीवन 30 वर्ष की अवस्था में त्याग दिया था।

• महावीर को 42 वर्ष की अवस्था में ऋजुपालिका  नदी  के  किनारे  साल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

• जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास ज्ञात होता है कल्पसूत्र से जिसकी रचना भद्रबाहु ने की थी।

• महावीर के जीवन का विवरण भवावती सूत्र में मिलता है।

• बौद्ध धर्म मध्य एशिया होते हुए चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका से समुद्र पार कर म्यांमार, थाईलैंड और इंडोनेशिया तक फैला है।

• महावीर की पुत्री का नाम प्रियदर्शनी था और उनके दामाद का नाम जमाली था।

• महावीर के प्रथम अनुयायी जमाली थे

• महावीर के प्रथम भिक्षुणी पद्‌मावती थी गो चंपा नरेश बाहन  की पुत्री थी।

• महावीर ने अपना प्रथम उपदेश, पावापुरी में प्रकृत भाषा में दिया था।

                  "जैन धर्म "

वंश(जातक) वर्ण (छत्रीय) गौत्र ( संघ)

• जैन धर्म का सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ कल्पसूत्र था जिसकी रचना संस्कृत में की गई थी।

"जैनधर्म के सम्प्रदाय "

1.) खेताम्बर। 2.) दिगम्बर 

"जैनधर्म के त्रिरत्न"

(सम्यक दर्शन)  (सम्यक ज्ञान ) ( सम्यक सम्यक आचरण)


• महावीर का प्रतीक चिन्ह बैल था।

• महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की अवस्था में 468 ई. पू. में बावापुरी में हुई थी

• प्रथम जैन सभा 322 से 298 ई. पू . में पाटलीपुत्र में हुई थी।

• जैन धर्म में जीवन का अंतिम लक्ष्य निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करना था।

प्र.1 साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगम  की भूमिका की चर्चा कीजिए ।

उतर  (ⅰ) भोपाल के शासको, शाहजहाँ बेगम और उनकी उत्तराधिकारी सुलतानजहाँ  बेगम ने इस प्राचीन स्थल के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान किया।

(ii) सुलतानजहाँ बेगम ने वहाँ पर एक संग्रहालय अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान दिया ।

(iⅱ) वहाँ रहते हुए ही मॉन मार्शल ने उपयुक्त पुस्तके लिखी।  इस पुस्तक के विभिन्न खंडों के प्रकाशन के लिए भी सुल्तानजहाँ बेगम ने अनुदान  दिया ।

(iv) इसलिए यदि यह स्तुप समूह बना रहा है तो इसके पीछे कुछ विवेकपूर्ण निर्णयों की बड़ी भूमिका है।

प्र. 2. ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दि का काल विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ क्यों माना जाता है?

उतर.  (ⅰ) क्योंकि इस काल में ईरान में जरथुस्त्र जैसे चिंतक,  चीन में खुंगतसी, युनान में सुकरात, प्लेटों अरस्तु और भारत में महावीर, बुद्ध और कई अन्य चिंतकों का उद्‌भव हुआ ।

(ⅱ) उन्होंने जीवन के रहस्यों को समझने का प्रयास किया ।

(iii)  साथ-साथ वे इनसानों और विश्व व्यवस्था के बीच रिश्ते को समझने की कोशिश की।

(iv) यही वे समय था जब गंगा घाटी में नए राज्य और शहर उमर रहे थे और सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में कई तरह के बदलाव आ रहे थे। ये मनीषी इन बदलावों हालात को भी समझने की कोशिश कर रहे थे।

प्र.3 . वैदिक परंपरा में यज्ञों का क्या महत्व था?

उतर. (i) पूर्व वैदिक परंपरा में यहाँ की जानकारी हमें 1500 से 1000 ईसा पूर्व में संकलित ऋग्वेद से मिलती है, वैसी ही एक प्राचीन परंपरा थी।

(ii) ऋग्वेद अग्नि, इंद्र, सोम आदि कई देवताओं की स्तुती का संग्रह है।

(iii) यज्ञों के समय इन स्रोतों का उच्चारण किया जाता था और लोग मवेशी, बेटे, स्वास्थ्य, लंबी उम्र आदि के लिए प्रार्थना करते थे।

प्र.4.  किन्हीं  दो जटिल यज्ञों के नाम बताइए और इनके अनुष्ठान के लिए इन्हें किस पर निर्भर रहना पड़ता था?

उतर.राजसूय और अश्वमेध जैसे जटिल यज्ञ सरदार और राजा किया करते थे। इनके अनुष्ठान के लिए उन्हें ब्राह्मण पुरोहित राजा पर निर्भर रहना पड़ता था।

प्र. 5 समकालीन बौद्ध ग्रंथों में हमें किसका उल्लेख मिलता है?

उतर.समकालीन बौद्ध गंथों में हमें 64 संप्रदायों और  चिंतन परंपराओं का उल्लेख मिलता है।

1) इससे ही जीवंत चर्चाओं और विवादों की एक शाखा मिलती है।

ii) शिक्षक एक जगह से दूसरी जगह घूम-घूम कर जाना। दर्शन या विश्व के विष्व में अपनी समझ को लेकर एक-दूसरे से तथा सामान्य लोगों से तर्क-विर्तक करते थे।

iii) ये चर्चाएँ कुटागारशालाओं : नुकीली छत वाली झोपड़ी या ऐसे     उपवनों में होती थी जहाँ  धूम्मक्कड़ मनीषी लक्ष्य करते थे।

iv)  यदि एक शिक्षक अपने प्रतिद्वंद्वी को अपने तर्क से समझा लेता था तो वह अपने अपने अनुयायियो के साथ अनका शिष्य बन जाता था इसलिए किसी भी संप्रदाय के लिए समर्थन समय के साथ बढ़ता-घटता रहता था।

प्र.6. ब्राह्मणवाद से आप क्या समझते है?

उतर. ब्राह्मणवाद से अभिप्राय है कि इनका मानना था कि किसी भी व्यक्ति का अस्तित्व उनकी जाति और लिंग से निर्धारित होता है।

प्र. 7.जैन दर्शन की मुख्य विशेषता क्या थी?

उतर.जैन दर्शन की सबसे महत्वपूर्ण अवधारण यह है, कि संपूर्ण विश्व प्राणवान है।

ⅱ) यह माना जाता है कि पत्थर, चहान, और जब में भी जीवन होता है।

iii) जीवों के प्रति अहिंसा खासकर इंसानों, जानवरों 'पेड़-पौधों और कीड़े-मकोड़ों को न मरना ओर जैन दर्शन का केन्द्र बिन्दु है। 

प्र. 8. जैन अहिंसा के सिद्धांत ने किसको प्रभावित किया था?

उतर.जैन अहिंसा के सिद्धांत ने संपूर्ण भारतीय चिंतन परंपरा को प्रभावित किया था।

प्र. 9. जैन धर्म का विस्तार किस प्रकार हुआ? समझाइए ।

उतर.(i) धीरे-धीर जैन धर्म भारत के कई हिस्सों में फैल गया। 

(ii) बौद्धों की तरह ही जैन विद्वानों ने प्राकृत, सांस्कृतिक तमिल जैसी अनेक भाषाओं में काफी साहित्य सृजन किया।

(iii)  सैकड़ों  वर्षों  से  इन ग्रन्थों की  पांडुलिपियों  मंदिरो  से  जुड़े पुस्तकालयों  में  संरक्षित है।

(iv) धार्मिक परंपराओं से जुड़ी हुई सबसे प्राचीन "  मूर्तियों में जैन   तीर्थकरों के उपासकों द्वारा बनवाई गई मूर्तियों भारतीय उपमहाद्वीप के कई हिस्सों में पाई गई है।

प्र.10 . सिद्धार्थ ने साधना के किन मार्गों को अपनाया,

उतर . (ⅰ) इसमें से एक था शरीर को अधिक से अधिक कष्ट देना जिसके चलते वे मरते-मरते बचे।

(ii) सिद्धार्थ ने इन अतिवादी तरीकों को त्यागकर, उन्होंने कई दिन तक ध्यान करते हुए अंततः ज्ञान की प्राप्ति किया।

(iii) इसके बाद से उन्हें बुद्ध अथवा ज्ञानी व्यक्ति के नाम से जाना गया।

(iv) बाकी जीवन उन्होंने धर्म या सम्यक जीवन यापन की शिक्षा दी।

प्र.11. बुद्ध की शिक्षाओं को किस आधार पर पुनर्निर्मित किया गया है।

उतर.(i).  बुद्ध  की  शिक्षाओं को सूत पिटक में दी गई कहानियों के आधार पर पुनर्निर्मित किया गया है।

(ii) कुछ कहानियों में उनकी अलौकिक शक्तियों का वर्णन है, दुसरी कथाएं दिखती है कि अलौकिक शक्तियों की बजाय बुद्ध ने लोगों को विवेक और तर्क के आधार पर समझने का प्रयास किया।

उदाहरण :- जब एक मरे हुए बच्चे की शोकमग्न मां बुद्ध के पास आई तो उन्होंने बच्चे को जीवित करने के बजाय उस महिला को मृत्यु को अवश्यंभावी होने की बात समझी। ये कथाएँ आम जनता की भावा में रची गई थी जिससे इन्हें आसानी से समझ जा सकता था।

प्र. 12. बुद्ध ने जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति के बाद किसकी कल्पना की है? इसमें निर्वाण का क्या अर्थ है?

उतर. 12. बुद्ध ने जन्म - मृत्यु के चक्र से मुक्ति के बाद आत्म - ज्ञान और निर्वाण के लिए व्यक्ति - केन्द्रित हस्तक्षेप और सम्यक कर्म की कल्पना की।

निर्वाण का अर्थ :- निर्वाण का अर्थ है अहं और इच्छा का खत्म हो जाना।

प्र. 13. बौद्ध परंपरा के अनुसार बुद्ध का अपने शिष्यो लिए उनका अंतिम निर्देश क्या था?

उतर. तुम सब अपने लिए खुद ही ज्योति  बनो क्याकी तुम्हें खुद ही अपनी मुक्ति का रास्ता ढूंढना हो'

प्र. 14.  भिक्खु किसे कहा जाता था?

उतर . 14. एक दिन में एक बार उपासकों से भोजन दान पाने  के लिए वे एक कटोरा रखते थे। चूंकि वे दान निर्भर थे इसलिए उन्हें  भिक्खु  कहा जाता था।

प्र .15. थेरी किसे कहते हैं?

उतर. ऐसी महिलाएँ जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया है। उसे थेरी कहते है।

प्र. 16. बुद्ध भगवान के अनुयायी समाज के किन-किन वर्गों से आए।

उतर.   (ⅰ) इसमें राजा, धनवान, गहपति और सामान्य जन कर्मकार, दास, शिल्पी सभी सामिल थे।

(ⅱ) एक बार संघ में आ जाने पर सभी को बराबर पाना जाता था क्योंकि भिक्खु और भिक्खुनी बनने पर उन्हें अपनी पुरानी पहचान को त्याग देना पड़ता था।

(iii) संघ की संचालन पद्धति गणों और संधो की परंपरा पर आधारित थी इसके तहत लोग बातचीत के माध्यम से एकमत होने की कोशिश करते थे।

प्र .17. बुद्ध के जीवन काल में और उनकी मृत्यु के बाद भी बौद्ध धर्म तेजी से फैला। क्यों? कोई दो कारण बताइए ।

उतर.(i)  इसका कारण यह था कि लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असंतुष्ट थे और उस युग में तेजी से हो रहे सामाजिक बदलावों ने उन्हें उलझनों में बाँध रखा था।

(ii)  बौद्ध शिक्षाओं में जन्म के आधार पर श्रेष्ठता की बजाय जिस तरह अच्छे आचरण और मूल्यों को महत्व दिया गया उससे महिलाएँ और पुरुष इस धर्म की तरफ आकर्षित हुए।

(iii) उसके छोटे और कमजोर लोगों की तरफ मित्रता और  "करुणा के भाव को महत्व देने के आदर्श काफ़ी लोगों को भाए।

प्र .18 स्तूप से आप क्या समझते है?

उतर. ऐसी कई अन्य जगहें थी जिन्हें पवित्र माना जाता था। इन जगहों पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष जैसे उनकी अस्थियाँ या उनके द्वारा प्रयुक्त समान गाड़ दिए गए थे। इन टिलो को स्तूप कहते थे।

प्र.19. चैव्य से आप क्या समझेते है?

उतर.  बहुत  प्राचीन  काल से ही लोग कुछ जगहों को पवित्र मानते   थे।  अक्सर जहाँ खास वनस्पति होती थी अनूठी चट्टाने या विस्यमयकारी प्राकृतिक सौंदर्य वहाँ पवित्र स्थल बन जाते थे। ऐसे कुछ स्थलों एक छोटी-से वेदी भी बनी रही रहती थी जिन्हें। कभी - कभी चैत्य कहा जाता था।

प्र.20 स्तूप कैसे बनाए जाते थे ?

उतर.(1) स्तूपों की वेदिकाओं और स्तंभों पर मिले अभिलेख से इन्हें बनाने और सजाने के लिए दान दिए गए

(ii) कुछ दान राजाओं के द्वारा दिए गए थे (जैसे सातवाहन वंश के राजा), तो कुछ दान शिल्पकारों और व्यापारियों की श्रेणियों द्वारा दिए गए।

(iii) साँची के एक तोरणद्वार का हिस्सा हाथी दांत का काम करने वाले शिल्पकारों के दान से बनाया गया।

(iv) इन इमारतों को बनाने में भिक्खुओं और भिक्खुनियों ने भी दान दिया।

प्र.21 साँची के स्तूप की संरचना का उल्लेख कीजिए?

उतर.(i) स्तूप (संस्कृत अर्थ टीला) का जन्म एक गोलार्ध, लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ जिसे बाद में अंड कहा गया। धीरे-धीर इसकी संरचना ज्यादा जटिल हो गई जिसमें कई चौकोर और गोल आकारों का संतुलन बनाया गया। अंड के ऊपर एक हर्मिका होती थी। यह छज्जे जैसा ढाँचा देवताओं के घर का प्रतीक था।

(ii) टीले के चारों ओर एक वेदिका होती थी जो पवित्र स्थल को सामान्य दुनिया से अलग करती थी।

(iii)  साँची  और भरहुत के आरंभिक स्तूप बिना अलंकरण  के है सिवाए इसके कि उसमें पत्थर की वेदिकाएँ और तोरणद्वार है ये पत्थर की वेदिकाएँ किसी बाँस के या काठ के घेरे के समान थी और चारों दिशाओं में खड़े तोरणद्वार पर खूब नक्काशी की गई थी।

(iv) उपासक पूर्वी द्वार से प्रवेश करके टीले को दाई तरफ रखते हुए दक्षिणावर्त परिक्रमा करते थे, माना वे आकाश में सूर्य के पथ का अनुसरण कर रहें हो। बाद में स्तूप के टीले और पेशेवार (पाकिस्तान में शाह जी की ढेरी में स्तूपों में ताख और मूर्तिया उत्कीर्ण करने की कला के काफी उदाहरण मिलते हैं।

प्र.22 पुरातत्ववेता एम. एच. कोल का अमरावती के स्तूप को लेकर क्या विचार था?

उतर. पुरातत्ववेता एच. एच. कोल का अमरावती के स्तूप- लेकर उनका मानना था कि संग्रहालयों में मूर्तियों प्यास्टर की प्रतिकृतियाँ रखी जानी चाहिए जबकि असली कृतियाँ खोज की जगह पर ही रखी जानी चाहिए दुर्भाग्य से कोल अधिकारियों को अमरावती पर इस के लिए राजी नहीं कर  पाए । उन्होंने लिखा "इस देश  की प्राचीन" कलाकृतियों की इट होने देना मुझे आत्मघाती और असमर्थनीय नीति लगती है।

प्र.23.  साँची क्यों बच गया जबकि अमरावती नष्ट हो गया। स्पष्ट कीजिए।

 उतर . (i) क्योंकि अमरावती की खोज थोड़ी पहले हो गई थी। तब तक विद्वान इस बात के महत्व को नहीं समझ पाए थे किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाय सेना की जगह पर ही संरक्षित करना कितना महत्वपू‌र्ण था।

(ii) 1818 में जब साँची की खोज हुई, इसके तीन तोरणद्वार तब भी खड़े थे। चौथा वहीं पर गिरा हुआ था और टीला भी अच्छी हालात में था।

(iii) तब भी यह सुझाव आया कि तोरणद्वारों को पेरिस लंदन भेज दिए जाए।

(iv) अंततः कई कारणों से साँची का स्तूप. बहीं बना रहा और आज भी बना हुआ है जबकि अमरावती का महाचैत्य  अब सिर्फ एक छोटा सा टीला है जिसका सारा गौरव नष्ट हो चुका है।

प्र .24. बौद्ध मुर्तिकला को समझने के लिए इतिहासकारों को बुद्ध के चरित्र लेखन के बोर में समझ क्यों बनानी पड़ी ?

उतर (i) क्योंकि बौद्धचसि लेखन के अनुसार, एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए बुद्ध की ज्ञान की प्राप्ति हुई। कई प्रारंभिक मूर्तिकारों ने बुद्ध की मानव रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया।

(ii) उदाहरणतः रिक्त स्थान बुद्ध के बयान की दशा तथा स्तूप महा परिणीबबान के प्रतीक बन गए। चक्र का भी प्रतीक के रूप में प्राय: इस्तेमाल किया गया।

(iii) यह बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले उपदेश का प्रतीक था। जैसा कि स्पष्ट हैं ऐसी मूर्तिकला को अक्षरशः नही समझा जा सकता है।

(iv) पेड़ का तात्पर्य केवल एक पेड़  नहीं था वरन् बुद्ध के जीवन की एक घटना का प्रतीक था ऐसे प्रतीकों को समझेने के लिए यह जरूरी है कि इतिहासकर कलाकृतियों के निर्माताओं को पहुंचाने की परंपराओं को जानें।

प्र .25. हीनयान क्या है?

उतर. महायान के अनुयायी दूसरी बौद्ध परंपराओं के समर्थकों व हीनयान के अनुयायी रहते थे?

प्र. 26. थेरवाद किसे कहते हैं?

उतर. परातन परंपरा के अनुयायी खुद को थेरवाद कहते थे। इसका मतलब है वे लोग जिन्होंने पुराने, प्रतिष्ठिन शिक्षकों (जिन्हें थेर कहते थे) के बताए रास्ते पर चलने वाले। 

प्र.27. ईसा के प्रथम सदी के बाद बौद्ध अवधारणाओं और व्यवहार में कौन-से बदलाव नजर आए है?

उतर (ⅰ) प्रारंभिक बौद्ध मत में निब्बान के लिए व्यक्तिगत प्रयास विशेष महत्व दिया गया था। बुद्ध को भी एक मनुष्य समझ जाता था जिन्होंने व्यक्तिगत प्रयास से प्रबोधन और निब्बान प्राप्त किया।

(ii) परंतु धीरे-धीरे एक मुक्तिदाता की कल्पना उभरने लगी। यह विश्वास किया जाने लगा कि वे मुक्ति दिलवा सकते थे। साथ- साथ बोधिसत की अवधारणा भी उभरने लगी। 

(ⅲ) बौधिसतों को परम करुणामय जीव माना गया जो अपने सत्कार्यों से पुण्य कमाते थे। लेकिन वे इस प्रयोग दुनिया को दुखों में छोड़ देने के लिए  और निब्बान प्राप्ति के लिए नही करते थे। 

(iv) बल्की वे इससे दूसरों की सहायता करते थे। बुद्ध और बोधिसत्रों की मूर्तियों की पूजा इस परंपरा का एक महत्वपू‌र्ण अंग  बन गई।

प्र.28. महायान और हीनयान से आप क्या समझते है?

उतर. महायान:- चिंतन की ईस नई परंपरा को महायान के नाम से जाना गया।

हीनयान :-  जिन लोगों ने इन विश्वासों को अपनाया उन्होंने पुरानी परंपरा को हीनयान नाम से संबोधित किया।

प्र.29. भक्ति किसे कहते है?

उतर. अराधना में उपासना और ईश्वर के बीच का रिश्ता प्रेम और समर्पण का रिश्ता माना जाता था। जिसे भक्ति कहते हैं।

प्र.30. गर्भगृह किसे कहते है?

उतर.शुरू के मंदिर एक चौकोर कमरे के रूप में थे जिन्हें गर्भगृह कहा जाता था।

प्र.31. शिखर से आप क्या समझते हैं?

उतर. गर्भगृह के ऊपर एक ऊंचा ढाँचा बनाया जाने लगा जिसे शिखर कहा जाता था।