Class 12th History Chapter 9 Notes in Hindi (किसान, जमींदार और राज्य)

किसान, जमींदार और राज्य, Class 12th History Chapter 9. आइन - ए- अकबरी की रचना किसने की थी ? और इसका मुख्य उद्देश्य क्या था? आइस-ए-अकबरी की रचना "अबुल

Class 12th History Chapter 9 Notes 

अध्याय - 8 किसान, जमींदार और राज्य

Q1.आइन - ए- अकबरी की रचना किसने की थी ? और इसका मुख्य उद्देश्य क्या था?

उतर. आइस-ए-अकबरी की रचना "अबुल फजल " ने की थी।

उद्देश्य :- आइन का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य का एक ऐसा खाका पेश करना था जहाँ एक मजबूत सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बनाकर रखता था

Q2. सोलहवीं शताब्दी में कृषि का विस्तार क्यों होने लगा था ?

उतर. जमीन की बहुतायत, मजदूरों की मौजूदगी और किसानों की गतिशीलता। के कारण से कृषि का लगातार विस्तार होने लगा था।

Q3. खेती का प्राथमिक उद्देश्य क्या था?

उतर. खेती का प्राथमिक उद्देश्य लोगों का पेट भरना था, इसलिए रोजमर्रा के खाने की जरूरतें जैसे चावल, गोहूँ, ज्वार इत्यादि फसलें सबसे ज्यादा उगाई जाती थी।

Q4. जिन्स -ए- कामिल क्या था और मुगल राज्य में इस तरह के फसलों को बढ़ावा क्यों देते थे?

उतर. जिन्स - ए- कामिल से अभिप्राय "सर्वोतम फसलों" से है और मुगल राज्य में इस तरह के फसलों को बढ़ावा इसलिए देते थे क्योंकि इससे राज्य को ज्यादा कर मिलता था।

Q5. सत्रहवीं सदी में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से कौन-सी-नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुँची ?

उतर.i) मक्का भारत में अफ्रीका और स्पेन के रास्ते आया और सत्रहवीं सदी तक इसकी गिनती पश्चिम भारत की मुख्य फसलों में होने-लगी थी।

ii) टमाटर, आलू और मिर्च जैसी सब्जियों नई दुनियाँ से आई। इसी तरह अनानस और पपीता जैसे फल भी वहीं से आएं।

Q6. सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के ग्रामीण भारत में जाति का क्या महत्व था और क्या ये ग्रामीण माहौल को नियमित करते थे?

उतर. i) जाति और अन्य जाति जैसे भेदभावों की वजह से खेतीहर किसान. कई तरह के समूहों में बंटे हुए थे। खेतों की जुताई करने वालों में एक बड़ी संख्या ऐसों लोगों की थी जो नीचे समझे जाने वाले कामों में लगे थे या फिर खेतों में मजदू‌री करते थे।

ii) हालाँकि खेती लायक ज़मीन की कमी नहीं थी, फिर भी कुछ जाति के लोगों को सिर्फ नीच समझे जाने वाले काम ही दिए जाते थे। इस तरह वे गरीब रहने के लिए मजबूर थे।

iii) जनगणना तो उस वक्त नहीं होती थी, पर जो थोड़े बहुत आँकड़े और तथ्य हमारे पास है उससे पता चलता है कि गाँव की आबदी का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसे ही समूहों का था। इसके पास संसाधन सबसे कम थे और ये जाति व्यवस्था की पाबंदियों से बंधे थे। इसकी हालत कमोबेश वैसी ही थी जैसी कि आधुनिक भारत में दलितों की।

iv) मुसलमान समुदायों में हलालखोरान जैसे 'नीच' कामो से जुड़े समूह गाँव की हदों के बाहर ही रह सकते थे; इसी तरह बिहार में मल्लाहजादाऔ (शब्दिक अर्थ, नाविकों के पुत्र) की तुलना कोसों से की जाती थी।

v) समाज के निचले तबको में जाति, गरीबी और सामाजिक हैसियत के बीच सीधा रिश्ता था। ऐसा बीच के समूहों में नहीं थे। मारवाड़ में लिखी गई एक किताब के अनुसार, राजपूतों की चर्चा किसानो के रूप में करती थे। इस किताब के अनुसार जाट भी किसान थे लेकिन जाति व्यवस्था में उनकी जगह राजपूतों के मुकाबले नीचीं थी

vi) सत्रहवीं सदी में राजपूत होने का दावा वृदांवन (उत्तर प्रदेश) के इलाके में गौरव समुदाय ने भी किया, बावजूद इसके कि वे जमीन की जुताई के काम में लगे थे।

(vii) पशुपालन में और बागवानी में बढ़ते मुनाफे की वजह से अहीर गुज्जर और माली जैसी जातियाँ सामाजिक सीढ़ी में ऊपर उठी।

viii) पूर्वी इलाकों में, पशुपालक और मछुआरी जातियाँ, जैसे सदगोप व कैवर्त भी किसानों की सामाजिक स्थिति पाने लगी।

Q7. पंचायत और गाँव का मुखिया किस तरह से समाज का निय मण करते थे ? विवेचना कीजिए

पंचायत में विविधता :-

(i)गाँव की पंचायत में बुजुर्गों का जमावड़ा होता था। आमतौर पर ये गाँव के महत्वपूर्ण लोग हुआ करते थे जिनके पास अपनी संपति के पुश्तैनी अधिकार होते थे। जिन गाँवो में कई जातियों के लोग रहते थे, अक्सर वहाँ पंचायत में विविधता पाई जाती थी।

ii) खेतिहार मज़दूरों के लिए पंचायत में कोई जगह न होना यह है एक ऐसा अल्पतंत्र था जिसमें गाँव के अलग- अलग संप्रदायों और जातियों की नुमाइंदगी होती थी फिर भी इसकी संभावना कम ही है कि छोटे -मोटे और नीच काम करने वाले खेतिहर मजदूरों के लिए इसमें कोई जगह नही थी।

iii) गाँव के मुखिया का चुनाव बुजुर्गों की सहमति से होना :-पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था जिसे मुक़द्दम या मंडल कहते थे। गाँव के मुखिया का चुनाव गाँव के बुजुर्गों की आम सहमति से होता था और इस चुनाव के बाद उन्हें इसकी मंजूरी जमींदार से लेनी पड़ती थी। मुखिया अपने पद पर तभी तक बना रहता था, जब तक गाँव के बुजुर्गों को उस पर भरोसा था।

iv) मुखिया के कार्य :- गाँव की आमदनी व खर्च का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का मुख्य काम था और इसमें पंचायत का पटवारी उसकी मदद करता था।

v) पंचायत के खर्चे में प्रत्येक व्यक्ति का योगदान होना :- पंचायत का खर्चा गांव के उस आम खज़ाने से चलता था जिसमें हर व्यक्ति अपना योगदान देता था। इस खजाने से उन कर अधिकारियों की खातिरदारी का खर्चा भी किया जाता था जो समय - समय पर गाँव का दौरा किया करते थे।

vi) कोष का इस्तेमाल सामुदायिक कार्यों के लिए होना :- इस कोष का इस्तेमाल बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए भी होता था और ऐसे सामूदायिक कार्यों के लिए भी जो किसान खुद नही कर सकते थे जैसे कि मिट्टी के छोटे-छोटे बांध बनाना या नहर खोदना ।

vii) पंचायत के कार्य: पंचायत का एक बड़ा काम यह तसल्ली करना था कि गाँव में रहने वाले अलग- अलग समुदायों के लोग अपनी जाति की हदों के अंदर रहे। पूर्वी भारत में सभी शादियाँ मंडल की मौजूदगी में होती थी। जाती की अवहेलना रोकने के लिए लोगों के आचरण पर नजर रखना गाँव के मुखिया की जिम्मेदारियों में से एक था।

viii) पंचायतों को गंभीर दंड देने का अधिकार :- पंचायतों को जुर्म लगान और समुदाय से निष्कासित करने जैसे ज्यादा गंभीर दण्ड देने के अधिकार थे। समुदाय से बाहर निकालना एक बड़ा कदम था जो एक सीमित समय के लिए लागू किया जाता था। इसके तहत दंडित व्यक्त्ति को गाँव छोड़ना पड़ता था। इस दौरान वह अपनी जाति और पेशे से हाथ धो बैठता था। ऐसी नीतियों का मकसद जातिगत रिवाजों की अवहेलना रोकता है।

ix) गाँव में हर जाति की पंचायत का होना : ग्राम पंचायत के अलावा गाँव में हर जाति की अपनी पंचायत होती थी। समाज में ये पंचायतें काफी ताकतवर होती थी। राजस्थान में जाति पंचायतें अलग - अलग जातियों के लोगों के बीच दीवानी के झगड़ों का निपटारा करती थी। वे जमीन से जुड़े दावेदारियों के झगड़े सुलझाती थी; यह तय करती थी कि शादियाँ जातिगत मानदंडों के मुताबित हो रही है या नही, और यह भी कि गाँव के आयोजन में किसको किसके ऊपर तरजीह दी जाएगी।

Q8. पश्चिमी भारत के विभिन्न प्रांतों के संकलित दस्तावेजों में किन अर्जियों का वर्णन है? और पंचायतों का इन अर्जियों के प्रति क्या व्यवहार था?

उतर. प्रसतावना : पश्चिम भारत खासकर राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रांतों के संकलित दस्तावेजों में ऐसी कई अर्जियाँ है जिनमें पंचायत से ऊंची जातियों या राज्य के अधिकारियों के खिलाफ जबरन कर उगाही या बेगार वसूली की शिकायत. की गई हैं। आमतौर पर यह अर्जियाँ ग्रामीण समुदाय के सबसे निचले तबके के लोग लगते थे।

अर्जियों का कारण : इनमें से किसी जाति या संप्रदाय विशेष के लोग संभ्रांत समूहों की उन मार्गो के खिलाफ अपना विरोध जताते थे जिन्हें वे नैतिक दृष्टि से अवैध मानते थे । उनमें एक थी बहुत ज्यादा कर की माँग क्योंकि इससे किसानों का दैनिक गुजारा ही जोखिम में पर जाता था, खासकर सूखे या ऐसी दुसरी विपदाओं के दौरान । उनकी नजर में जिंदा रहने के लिए न्यूनतम बुनियादी साधन ही उनका परंपरागत रिवाजी हक था।

अर्जियों के प्रति पंचायतों का रूख :- वे समझते थे कि ग्राम पंचायत की इसकी सुनवाई कसी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य अपना नैतिक फर्ज अदा करे और न्याय करे । " निचले जाति” के किसानों और राज्य के अधिकारियों या स्थानीय जमींदारों के बीच झगड़ों में पंचायत के फैसले अलग - अलग मामलों में अलग - अलग हो सकते हैं। अत्यधिक कर की मांगों के मामले में पंचायत अकसर समझौते का सुझाव देती थी।

किसानों द्वारा अपनाए गए रास्ते :- जहाँ समझौते नहीं हो पाते थे, वहाँ किसान विरोध के ज्यादा उग्र रास्ते अपनाते थे, जैसा कि गाँव छोड़कर भाग जाना।

Q9. अलग - अलग तरह के उत्पादन कार्य में जुटे लोगों के बीच फैले लेन-देन के रिश्ते गाँव का एक और रोचक पहलू था।-कैसे? इस कथन के पक्ष में उत्तर दीजिए।

उतर. i) अंग्रेजी शासन के शुरुआती वर्षों में किए गए गाँवों के सर्वेक्षण और माराठाओं के दस्तावेज बताते है कि गाँवों में दस्तकार काफी अच्छी संख्या में रहते थे। कहीं-कहीं तो कुल घरों के 25 प्रतिशत घर दस्तकारों के थे।

ii) कमी - कभी किसानों और दस्तकारों के बीच फर्क करना मुश्किल होता था क्योंकि कई ऐसे समूह थे जो दोनों किस्म के काम करते थे। खेतिहर और उसके परिवार वे सदस्य कई तरह के वस्तुओं के उत्पादन में शामिल होते थे।

iii) मसलन - रंगरेज़ी, कपड़े पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाना, खेती के औज़ारों को बनाना या उनकी मरम्मत कर उन महीनों में जब उनके पास खेती के काम से फुरसत हो जैसे - कि बुआई और सुहाई के बीच या सुहाई और कटाई के बीच - उस समय ये खेतिहर दस्तकारी का काम करते थे

iv) कुम्हार, लोहार, बदई; नाई यहाँ तक कि सुनार जैसे ग्रामीण दस्तकार भी अपनी सेवाएँ गाँव के लोगों को देते थे जिसके बदले. गाँव वाले उन्हें अलग- अलग तरीकों से उन सेवाओ की अदायगी करते थे। आमतौर पर था उन्हें फसल का एक हिस्सा दे दिया जाता था या फिर गाँव की जमीन, शायद कोई ऐसी ज़मीन जो खेती लायक होने के बावजूद बेकार पड़ी थी

Q10. कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका का विवरण दीजिए एवं उल्लेख कीजिए।

उतर. i) महिलाएँ और मर्द कंधे से कंधा मिला कर कृषि क कार्य करते थे, महिलाएं बुआई निराई कताई, फसल का दाना निकालना आदि कार्य करती थी।

ii) सुत काटने, बरतन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने और गूंधने और कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के काम महिलाए करती थी।

iii)प्रतिबंध। मनाही

  • राजस्वला महिला को हल. कुम्हार का चाक छूने की इजाजत नहीं थी।
  • बंगाल में मासिक धर्म के समय महिलाएँ पान के बाग में नहीं घुस सकती थी।

iv) समाज श्रम पर निर्भर था, इसलिए बच्चा पैदा करने की अभी काबिलियत की वजह से महिलाओं को महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में देखा जाता था।

v) शादी-शुदा महिलाओं की कमी थी, क्योंकि कुपोषण, बार-बार माँ बनने और पाश्र्व के वक्त मौत की वजह से महिलाओं में मृत्युदर बहुत ज्यादा थी।

vi) इससे किसान और दस्तकार समाज में ऐसे समाजिक रिवाज पैदा हुए जो संभ्रांतो से अलग थे, शादी के लिए 'दुल्हन की कीमत उदा करनी होती थी न कि दहेज की।

vii) महिलाओं की प्रजनन शक्ति पर बल दिया जाता था, घर का मुखिया मर्द होता था, वह परिवार पर नियंत्रण रखता था, बेवफाई के शक पर महिलाओं को भयानक दंड दिया जाता था।

viii) पंजाब में महिलाओं को संपत्ति का अधिकार मिला था। और बंगाल में महिला जमींदार भी थी तथा जमीन को खरीद व बेच सकती थी।

Q11. सोलह‌वीं और सत्रहवीं के ग्रामीण भारत में जंगलों मे रहने वाले कबीलों की मुख्य विशेषता क्या थी? 

उतर. प्रस्तावना : ग्रामीण भारत में बसे हुए लोगों की खेती के अलावा भी बहुत कुछ था। उतर और, उत्तर-पश्चिमी भारत की गहरी खेती वाली प्रदेशों को छोड़ दे तो ज़मीन के विशाल हिस्से जंगल या झाड़ियों से घिरे थे। ऐसे इलाके झारखंड-सहित पूरे पूर्वी भारत, मध्य भारत, उत्तरी क्षेत्र, दक्षिणी भारत का पश्चिमी घाट और दक्कन के पठारों में फैले हुए थे ऐसा अनुमान है कि इस काल में ग्रामीण भू-भाग का 4 प्रतिशत हिस्सा जंगल और झाड़ियों से घिरा हुआ था।

जंगल में रहने वाले लोगों के लिए जंगली शब्द का इस्तेमाल होना: सोलहवीं और सत्रहवीं सदी के दौर में जो भी समसामयिक रचनाएं मिली उन रचनाओं में जंगल में रहने वाले लोगों के लिए जंगली शब्द का इस्तेमाल किया जाता था। उन दिनों इस शब्द का इस्तेमाल ऐसे लोगों के लिए होता था जिसका गुजारा जंगल के उत्पादों शिकार और स्थानांतरीय खेती से होता था। ये काम मौसम के मुताबिक होते थे। जैसे - बसंत के मौसम में जंगल के उत्पाद इकट्ठा किए जाते, गर्मियों में मछली पकड़ी जाती.  मानसून के महीने में खेती की जाति, और शरद व जाड़े के मौसम में शिकार किया जाता था।

जंगल में रहने वाले कबीलों की खासियत :- लगातार एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहना इन जंगलों में रहने वाले कबीले की एक खासियत थी।

Q12 .सोलहवीं  और सत्रहवीं शताब्दी के जंगल राज्य के लिए उलट फेर वाला इलाका क्यों था?

उतर . क्योंकि बदमाशों को शरन देने वाला अड्डा (मवास) एक बार फिर मुगल शासक बाबर के अनुसार परगना के लोग कडे विद्रोही हो जाते थे और कर अदा करने से मूकर जाते थे। अतः इसलिए राज्य के लिए जंगल उलटफेर वाला इलाका था।

Q13 .दरबारी इतिहासकारों के अनुसार मुगल बादशाहों के लिए शिकार अभियान एक महत्वपूर्ण अभियान क्यों था

उतर. i)क्योंकि मुगल राजनीतिक विचारधारा में गरीबों और अमीरों सहित सबके लिए न्याय करने का राज्य के गहरे सरोकारो का एक लक्षण था शिकार अभियान।

ii) दरबारी इतिहास कारों की माने तो, शिकार अभियान के नाम पर बादशाह अपने विशाल साम्राज्य के कोने-कोने का दौरा करता था और इस तरह अलग - अलग इलाको के लोगों की समस्याओं और शिकायतों पर व्यक्तिगत रूप से गैर करता था।

Q14. वाणिज्यिक खेती का असर, बाहरी कारक के रूप में जंगलवासियों की जिंदगी पर किस प्रकार पड़ता है?

उतर. i) जंगल के उत्पाद -जैसे शहर, मधु‌मोम और लाक की बहुत माँग थी। लाक जैसी कुछ वस्तुएँ तो सत्रहवी सदी में भारत से समुद्र पार वाले निर्यात की मुख्य वस्तुएँ थी। हाथी भी पकड़े और बेचे जाते थे।

ii) व्यापार के तहत वस्तुओं की अदला बदली भी होती थी। कुछ कबीले भारत और अफगानिस्तान के बीच होने वाले जमीन व्यापार में लगे हुए थे, जैसे पंजाब लोहानी कबीला। ये कबीला पंजाब के गाँवों और शहरों के बीच होने वाले व्यापार में शामिल होते थे।

15. सामाजिक कारणों से जंगलवासियों के जीवन में कौन कौन से बदलाव आए ?

उतर. i) कबीले के भी सरदार होते थे, बहुत कुछ ग्रामिण समुदाय के बड़े "आद‌मियों" की तरह। कई कबीलों के सरदार जमींदार बन गए, कुछ तो राजा भी हो गये । ऐसे में उन्हें सेना खड़ी करने की जरूरत हुई। उन्होंने अपने ही खानदानों के लोगों को सेना में भर्ती किया; या फिर अपने ही भाई- बंदुओं से सैन्य सेवा की मांग की।

ii) सिंध इलाके की कबीलाई सेनाओं में 6000 घुड़सवार और 7000 पैदल सिपाही होते थे। असम में अहोम राजाओं के अपने 'पायक' होते थे। ये वे लोग जिन्हें जमीन के बदले सैनिक सेवा देनी पड़ती थी। अहोम राजाओं ने जंगली हाथी पकड़ने पर अपने एकाधिकार का ऐलान भी रखा था।

(iii) कबीलाई व्यवस्था से राजतांत्रिक प्रणाली की तरफ संक्रमण बहुत पहले शुरू हो चुका था, लेकिन ऐसा कि सोलहवीं शताब्दी में में आकर ही यह प्रक्रिया पूरी तरह विकसित हुई। इसकी जानकारी हमें उत्तर-पूर्वी इलाकों में कबीलाई राज्यों के बारे में जानकारी आयन से मिलती है।

(iv)जंगल के इलाके में नए सांस्कृतिक प्रभावों के विस्तार की भी शुरूआत हुई कुछ इतिहासकारों ने तो यह भी सुआव दिया कि नए बसे इलाकों के खेतिहर समुदायों ने धीरे - धीरे इस्लाम धर्म को अपनाया।

Q16.मुग़ल भारत में जमीदारों की भूमिका की जाँच कीजिए।

i) मुग़ल भारत में एक ऐसा समुदाय था जिसकी कमाई तो खेती से आती थी लेकिन जो कृषि उत्पादन में सीधे हिस्सेदारी नही करते थे। ये समुदाय जमींदारों का था जो अपनी जमीन के मालिक होते थे और जिन्हें ग्रामीण समाज में ऊंची हैसियत की वजह से कुछ खास सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ मिली हुई थी।

(ii)जमीदारों की बढ़ी हैसियत के पीछे एक कारण जाति था, तो दुसरा कारण यह था कि वे लोग राज्य को कुछ खास किस्म की सेवाएं खिदमत) देते थे।

ⅲ) जमीदारी की समृद्धि की वजह थी उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन । इन्हें मिल्कियत कहते थे, यानि संपति । मिल्कियत जमीन पर जमींदार के  निजी इस्तेमाल के लिए खेती होती थी अकसर इन जमीनों पर दिहाड़ी के मजदूर या पराधीन मजदूर काम करते थे। जमींदार अपनी मर्जी के मुताबिक इन जमीनों को बेच सकते थे, किसी और के नाम पर कर सकते थे या में गिरवी रख सकते थे।


*मिल्कियत ज़मीन की विशेषता :-

i) मिल्कियत ज़मीन जमीदारों की विस्तृत व्यक्तिगत जमीन होती थी।

ii) इन ज़मीनों पर दिहाड़ी के मजदूर व पराधीन मजदूर काम करते थे और इन जमीनों का उपयोग जमींदार द्वारा निजी उपयोग के लिए किया जाता था।

iii) इन जमीनों को जमींदार अपनी मर्जी से बेच सकते थे दे सकते थे या फिर उन्हें गिरवी रख सकते थे।

iv) जमींदारों की ताकत इस बात से भी आती थी कि वे .. अकसर राज्य की ओर से कर वसूलते थे। इसके बदले -उन्हें वित्तिय मुआवजा मिलता था । सैनिक संसाधन उनकी ताकत का एक और जरिया था । ज्यादातर जमींदारों के पास अपने किले थे और अपनी सैनिक टुकड़ियाँ थी। जिसमे घुड़सवारों, तोपखाने और पैदल सिपाहियों के जत्थे होते थे।

v) समसामयिक दस्तावेजों से ऐसा लगता है कि जंग में जीत "जमींदारों की उत्पत्ति का संभावित स्रोत रहा होगा। अकसर, जमींदारी फैलाने का एक तरीका था ताकतवर सैनिक सरदारों के द्वारा कमजोर लोगों को बेदखल करना। लेकिन इनकी संभावना बहुत कम है वि किसी जमींदार को इतने आक्रामक रुख की इजाजत राज्य देता होगा। जब तक कि एक राज्यादेश के जरिये इनकी पुष्टि पहले ही नही कर दी गई हो।

vi) इससे भी महत्वपूर्ण थी जमींदारी को पुख्ता करने की धीमी प्रक्रिया। कई स्रोतों में इसके दस्तावेज शामिल है। अधिकारों के हस्तांतरण के ज़रिये, राज्य के आदेश से, या फिर खरीद कर। यही वे प्रक्रिया थी जिसके ज़रिये अपेक्षाकृत निचली जातियों के लोग भी जमींदारों के दर्जे में शामिल हो सकते थे, क्योंकि इस काल में जमींदारी धड़ल्ले से खरीदी और बेची जाती थी।

vii) कई कारणों ने मिलकर परिवार या वंश पर आधारित जमींदारियों को पुख्ता होने का मौका दिया। मसलन, राजपूतों और जाटों ने ऐसी रणनीति अपना कर उत्तर भारत में जमीन की बड़ी-बड़ी पट्टियों पर अपना नियंत्रण पुख्ता किया। इसी तरह मध्य और दक्षिण - पश्चिम बंगाल में किसान -पशुचारियों ने ताकतवर ज़मीदारियाँ खड़ी की।

viii) जमींदारों ने खेती लायक जमीनों को बसाने में अगुआई की और खेतिहरों को खेती के साजो-समान व उधार देकर उन्हें वहाँ बसने में भी मदद की। जमीनदारी की खरीद - फरोख्त से गाँवो के मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई। इसके अलावा, जमींनदार अपनी मिल्कियत की जमीनी के फसल भी बेचते थे। जमींदार अकसर बाजार स्थापित करते थे जहां अकसर किसान अपनी फसल बेचने आते थे।

Q17.किस प्रकार जमीन से मिलने वाला राजस्व मुगल साम्राज्य के लिए आर्थिक बुनियाद था ?

                                        OR

मुगल साम्राज्य की भू-राजस्व प्रणाली का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।

उतर. i) प्रशासनिक तंत्र का खड़ा होना : ज़मीन से मिलने वाला राजस्व मुगल साम्राज्य की आर्थिक बुनियाद थी। इस कारण से कृषि उत्पादन पर नजर रखने के लिए और तेजी से फैलते साम्राज्य के तमाम इलाकों में राजस्व आकलन व वसूली के लिए यह जरूरी था कि राज्य एक प्रशासनिक तंत्र खड़ा करें।

ⅱ) दीवान की नियुक्ति :- दीवान, जिसके दफ्तर पर पूरे राज्य की वित्तिय व्यवस्था के देख-रेख की जिम्मेदारी थी इस तंत्र में शामिल था। इस तरह हिसाब रखने वाले और राजस्व अधिकारी खेती की दुनिया में दाखिल और कृषि संबंधों को शक्ल देने में एक निर्णायक ताकत के रूप में उभड़े।

iii) सूचनाएँ इकट्ठा करना :- लोगों पर कर का बोझ निर्धारित करने से पहले मुगल राज्य ने जमीन और उस पर होने वाले उत्पाद के बोरे में खास किस्म की सूचना इकट्ठा करने की कोशिश की।

iv) भू-राजस्व के इंतज़ामात के दो चरणों का होना :- मुगल भारत में भू-राजस्व के इतज़ामात के दो चरण है पहला, कर निर्धारण और दूसरा, वास्तविक वसूली गई जमा निर्धारित रकम थी और हासिल सचमुच वसूली रकम थी।

v) अमील- गुजार व्यवस्था :- अमील गुजार या राजस्व वसूली करने वाले के कामों की सूची में अकबर ने यह हुक्म दिया कि जहाँ उसे कोशिश करनी चाहिए कि खेतिहर नकद भुगतान करे, वहीं फसलों में भुगतान का भी विकल्प खुला रहे।

vi) राज्य द्वारा राजस्व इकट्ठा करना :- राजस्व निर्धारित करते समय राज्य अपना हिस्सा ज्यादा से ज्यादा रखने की कोशिश करता था मगर स्थानीय हालात की वजह से कभी - कभी सचमुच में इतनी वसूली कर पाना संभव नहीं हो पाता था।

vii) जमीनों के आकड़ों को संकलित करना :- हर प्रांत में जुती हुई जमीन और जोतेने लायक ज़मीन दोनों की नपाई की गई। अकबर के शासन काल में ऐसी जमीनों के सभी आकड़ों को संकलित किया। अबुल फजल ने।

viii) खेतिहरों की संख्या का सालाना हिसाब किताब रखना :- 1665 ई.  में औरंगजेब ने अपने राजस्व कर्मचारियों को स्पष्ट निर्देश दिया कि हर गाँव में खेतिहरों की संख्या का. सालाना हिसाब रखा जाए। परंतु इसके बावजूद सभी इलाकों की नपाई सफलतापूर्वक नहीं हुई।.

अतः भू-राजस्व प्रणाली मुगल साम्राज्य द्वारा राजस्व इकट्टा करने की एक व्यवस्थित प्रणाली थी और इस प्रणाली तंत्र में पूरा मुगल साम्राज्य व उनके शासक मुख्य रूप से शामिल थे।

Q18.सोलह‌वीं और सत्रहवी शताब्दी में एशिया के कौन-से साम्राज्य थे, जिनका सत्ता और संसाधनों पर मजबूत पकड़ थी?

उतर. मिंग साम्राज्य (चीन)

        सफ़ावी (ईरान)

        ऑटोमन (तुर्की)

Q19. चाँदी के बहाव से भारत के व्यापार में कौन-से दो प्रमुख परिवर्तन आए?

उतर. i) भारत के समुद्र पार व्यापार में भौगोलिक विविधता आईं 

ii) इससे नई वस्तुओं का व्यापार शुरू हुआ।

Q20. एशिया में भारी मात्रा में चाँदी का बहाव भारत के लिए महत्वपूर्ण क्यों था।

उत्तर. i) क्योंकि यहाँ चाँदी के प्राकृतिक संसाधन नही थे। सोलहवीं से अठारहवीं सदी के बीच भारत भारत में धातु मुद्रा खास कर चाँदी के रूपयों की उपलब्धि में अच्छी स्थिरिता बनी रही।

ii) अर्थव्यवस्था में मुद्रा संचार और सिक्कों की ढलाई में अभूत पूर्व विस्तार हुआ, दुसरी तरफ मुगल राज्य को नकदी कर उगाहने में आसानी हुई।

Q21. अकबर नामा की रचना कब और किसने की थी?

उतर. अकबरनामा की रचना 1598 ई. में अबुल फजल ने की थी।

*आइन - ए- अकबरी

प्रस्तावना :- अकबरनामा मुगल साम्राज्य पर लिखी गई एक विस्तृत किताब थी, इस किताब को तीन जल्दों में रचा गया था और इसकी तीसरी जिल्द " आइन - ए- अकबरी " थी। आयन में दरबार, प्रशासन और सेना का संगठन; राजस्व के स्रोत और अकबरी साम्राज्य के प्रांतो का भूगोल; और लोगों के साहित्यिक सांस्कृतिक व धार्मिक रिवाज । अकबर की सरकार के तमाम विभागों और प्रांतों (सूबों) के बारे में विस्तार से जानकारी देने के अलावा, इन सूचनाओं को इकट्ठा करके, उन्हें सिलसिलेवार तरीके से संकलित करना एक महत्वपूर्ण शाही कवायत थी।

सिपह- आबादी: जबकि दूसरे भाग में सैनिक व नागरिक प्रशासन और नौकरी की व्यवस्था के बारे में है। इस भाग में अफसरों (मनसबदार, विद्वानों कवियों और कलाकारों की संक्षिप्त जीवनियाँ शामिल है।


सुनक - आबादी :- इस भाग में साम्राज्य व प्रांतो के वित्तिय पहलुओं तथा राजस्व की दरों के आंकड़ों की विस्तृत जानकारी हो बाद " बारह प्रांतो का बयान" देता है।

चौथी और, पाँचवी किताब :- चौथीं और पाँचवी किताबें (दफ्तर भारत के लोगों के मजहबी, साहित्यिक और सांस्कृतिक रीति रिवाजों से ताल्लुक रखती है; इसके आखिर में अकबर के " शुभ वचनों" का एक संग्रह भी है।

* आयन की मुख्य सीमाएँ :-

i) इसमें जोड़ करने में गलतियाँ पाई गई है कि या तो ये अंक गणित की छोटी - मोटी चूक है या फिर नकल उतारने के दौरान "अबुल फजल  के सह‌योगियों की मूल। आमतौर पर थे गलतियाँ मामूली है और एक व्यापक स्तर पर किताबों के आंकड़ो की सच्चाई को कम नही करतीं।

ii) आयन की एक और सीमा यह है कि इसके संख्यात्मक आंकड़े में विषमताएँ है। सभी सूबों से आंकड़े एक ही शक्ल में नही एकत्रित किए गए। मसलन, जहाँ कई सूबों के लिए जमींदारों जाति की मुलतिक विस्तृत सूचनाएँ संकलिए की गई, वहीं बंगला और उड़ीशा के लिए ऐसी सूचनाएँ मौजूद नहीं है।

iii) जहाँ सूबों से लिए गए राजकोषीय आंकड़े बड़ी तफसील के दिए गए है, वहीं उन्हीं इलाकों से कीमतों में और मजदूरी जैसे इतने ही महत्वपूर्ण मापदंड इतने उच्छे से दर्ज नहीं कि गए है।

iv) कीमतों और मजदूरी की दरों की जो विस्तृत सूची आइन में दी भी गई हैं वह साम्राज्य की राजधानी आगरा या उसके इर्द-गिर्द के इलाकों से ली गई है। जाहिर है कि देश देश के बाकी हिस्सों के लिए इन आंकड़ो की प्रासंगिकता सीमित है।


* आइन में मुगल सरकार के बारे में वर्णित विषय : मुगल साम्राज्य से संबंधित सूचनाएँ तालिकाबद्ध तरीके से दी गई है, जहाँ हर तालिका में आठ खाने है जो हमें निम्नलिखित सूचनाएं देते हैं; 1) महल, २) किला, ३) अराज़ी और जमीन - ए- पाईमूद (मापे गए इलाके), 4) नकदी (नक्द निर्धारित राजस्व), 5) सुयूरगल (दान में दिया गया राजस्व अनुदान), 6) जमींदार, 7) जमींदारों की. जातियाँ, 8) घुडसवार, पैदल सिपाही और हाथी ।