उपनिवेशवाद और देहात सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Notes in Hindi Class 12 History Chapter-9
उपनिवेशवाद और देहात (अध्याय -9)
* उपनिवेशवाद - उपनिवेशवाद से अभिप्राय उस स्थिति से है जब कोई शक्तिशाली देश किसी कमजोर देश पर राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेता है तो ऐसी स्थिति को उपनिवेशवाद कहते हैं।
प्र.1 सन् 1997 में वर्तमान में नीलामी की जाने वाली अधिकतर भू- संपदाएँ फर्जी क्यों थी?
उतर . (i) क्योंकि जमींदार व उनके एजेंटों द्वारा भू- संपदाओं की ऊंची बोली लगाना ।
(ⅱ) नीलामी में जमींदारों के एजेंट व नौकरों का शामिल होना।
प्र.2 सन् 1770 के दशक तक आते-आते बंगाल की ग्रामीण अर्थव्यवस्था संकट के दौर से क्यों गुजरने लगी थी ?
उतर. क्योंकि बार- बार अकाल पड़ रहे थे और खेती की पैदावार घटती जा रही थी । अत: इसलिए बंगाल में इस दौर की ग्रामीण अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही थी।
प्र 3.बंगाल में जमींदारों की भू-संपदाएं नीलाम क्यों कर दी जाती थी? कोई दो कारण बताइए ।
उतर(i) इस्तमरारी बंदोबस्त का लागू होना।
(ii)जमींदारों पर भारी रकम का बकाया होना।
प्र 4. राजस्व राशि के भुगतान में जमींदार क्यों चूक करते थे?
उतर (i) प्रारंभिक मांगे बहुत ऊँची थी क्योंकि ऐसा महसूस किया गया था कि यदि मांग को आने वाले संपूर्ण समय के लिए निर्धारित गया किया जा रहा है तो आगे चलकर किमतो में बढ़ोतरी होने और खेती का विस्तार होने पर आए मे वृद्धि हो जाने पर भी कंपनी उस वृद्धि में अपने हिस्से का दावा कभी नही कर सकेगी इस प्रत्याशित हानि को कम-से-कम स्तर पर रखने के लिए कंपनी ने राजस्व माँग को ऊंचे स्तर पर रखा, और इसके लिए कंपनी ने राजस्व माँग को ऊंचे स्तर पर रखा, और इसके लिए कंपनी ने दलील दी की जैसे-जैसे कृषि के उत्पादन में वृद्धि होती जाएंगी। और वैसे-वैसे कीमतें बढ़ दी जाएँगी।
ⅱ) इस्तमरारी बदोबस्त को गलत समय पर लागू करन - यह ऊंची। मांग 1790 के दशक में लागू की गई थी जब कृषि की उपज की कीमतें नीचे थी, जिससे किसानों के लिए, जमींदार को उनकी देय राशि चुकाना बहुत मुश्किल था।
iii) राजस्व का असमान होना :- राजस्व असमान था, फसल अच्छी हो या खराब राजस्व का ठीक समय पर भुगतान जरूरी था। सूर्यास्त विधि (कानून) के अनुसार, यदि निश्चित तारीक को सूर्यास्त होने तक भुगतान नहीं होता था. तो ऐसी स्थिति में जमीदारों की जमींदारियाँ नीलाम की जा सकती थी।
iv) जमीनदारों की शक्ती का सीमित होना :- इस्तमरारी बंदोबस्त ने प्रारंभ से जमींदार की शक्ति को रैयत से राजस्व इकट्ठा कसे और अपनी जमींदारी का प्रबंध करने तक ही सीमित कर दिया था।
"राजस्व राशि के भुगतान का जमींदारों द्वारा चूक करने का कारण "
1) • प्रारंभिक मांगो का ऊँचा होना
2) इस्तमरारी बंदोबस्त को गलत समय पर लागू करना
3) राजस्व का असमान होना
4) जमींदारी की शक्ति का सीमित होना
- कंपनी
- जमींदार
- रैयत
कंपनी :- कंपनी ने राजस्व को इखट्टा करने के लिए इस्तमरारी बंदोबस्त के तहत सूर्यास्त विधि (कानून) की अपना रखा था
जमींदार :- यदि राजस्व सही समय पर कंपनी को जमींदारों द्वारा अदा नही किया जाता था, तो कंपनी उनकी भू- संपदाओं की नीलामी कर देती थी।
- ईस्तमरारी बदोबस्त 1793 में चाल्र्स कार्नवालिस के नेतृत्व में अपनाया गया था।
प्र 5 अठारहवीं शताब्दी के अंत में भारतीय ग्रामीण समाज में जोतदारों का उदय किस प्रकार हुआ? स्पष्ट कीजिए।
उतर. फ्रैंसिसी बुकानन के उत्तरी बंगाल के दिनाजपूर जिले के धनी किसानों के इस वर्ग का पता चला, जिन्हें 'जोतदार कहा जाता था।
ii) उन्नसवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों तक आते-आते जोतदारों ने "जमीन के बड़े-बड़े रकबे, जो कभी-कभी तो कई हजार एकड़ में फैले थे, अर्जित कर लिए थे।
iii) स्थानीय व्यापार और साहूकार के कारोबार पर भी उनका नियंत्रण था और इस प्रकार वे उस क्षेत्र के गरीब साहूकार पर भी नियंत्रण था अर्थात् जोतदार अपनी शक्ति का इन गरीब काश्तकारों पर व्यापक प्रयोग करते थे।
iv) उनकी ज़मीन का काफी बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोत जाता था, जो खुद अपने हल लाते थे, खेत में मेहनत करते थे ओर उपज के बाद फसल का आधा हिस्सा जोतदारों को दे देते थे।
* जोतदारों की विशेषता :-
i) ये उत्तरी बंगाल के दिनाजपुर क्षेत्र के आस पास. पाये जाते थे।
ii) यह आर्थिक रूप से समृद्ध व धनी किसान होते थे।
iii) इनके पास जमीन का एक बहुत बड़ा टुकड़ा था जो कृषि करने के योग्य था।
iv) ये प्रत्यक्ष रूप से कृषि क्रियाकलापों में शामिल नहीं होते थे।
V)अधिकतर जोतदारों ने अपनी ज़मीन बटइदारों को दे रखी थी।
प्र6.गाँव के मुखिया जोतदार और मंडल जमीदार को परेशानी में देखकर बहुत खुश क्यों होते थे?
उतर. क्योंकि जमींदार आसानी से उन पर अपनी ताकत का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे।
प्र7.गाँवो में जोतदारों की व्यक्ति जमीदारों की ताकत की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली क्यों होता था?
उतर.i) जमींदार शहरी इलाको में रहते थे जबकि पोतदार गाँवों में रहते "थे और गरीब ग्रामवासियों के काफ़ी बड़े वर्ग पर सीधे अपने नियंत्रण का प्रयोग करते थे।
ii) ज़मींदारों द्वारा गाँव की लगान को बढाने के लिए किए जाने 'वाले प्रयत्नों का वे घोर प्रतिरोध करते थे; जमीदारी अधिकारियों को अपने कर्तव्यों का पालन करने से रोकते थे, जो रैवत उन पर निर्भर रहते थे उन्हें वे अपने पक्ष में एकजुट रखेते थे और ज़मींदार को राजस्व के भुगतान मे जान-बूझकर देरी करा देते थे।
ⅲ) सच तो यह है कि जब राजस्व का भुगतान ना किए जाने पर : जमींदार की जमींदारी को नीलाम किया जाता था तो अकसर जोतदार ही उन जमीनों को खरीद लेते थे।
iv) उतरी बंगाल में जोरदार सबसे अधिक शक्तिशाली थे, ,हालांकि धनी किसान और गाँव के मुखिया लोग भी बंगाल के अन्य भागों के देहाती इलाकों में प्रभावशाली बनकर उभड रहे थे। कुछ जगहो पर उन्हें ‘‘हवलदार’’ कहा जाता था। और कुछ स्थानों पर वे गांरीदार यां " मंडल " कहलाते थे। उनके उदय से ज़गीदारों के अधिकार का कमजोर पड़ना संभव था।
प्र8.राजस्व की अत्यधिक माँग और अपनी भू- संपदा की संभावित नीलामी की समस्या से निपटने के लिए जमींदारों ने इन दबावो से उबरने के लिए कौन-कौन से रास्ते निकालें ?
उत्तर. i बर्द्धमान के राजा ने पहले तो अपनी ज़मींदारी का कुछ हिस्सा अपनी माता को दे दिया क्योंकि कंपनी ने यह निर्णय ले रखा था कि स्त्रियों की संपत्ति को नहीं छीना जाएगा।
(ii) फिर दूसरे कदम के तौर पर उसके एजेंटों ने नीलामी की प्रक्रिया से जोड़-तोड़ किया। कंपनी की राजस्व माँग को जानबूझ कर रोक लिया गया और भुगतान न की गई बकाया राशि बढ़ती गई।
ⅲ) जब भू- संपदाएँ का कुछ हिस्सा नीलाम किया गया तो जमींदार के आदमियों ने ही अन्य खरीददारों के मुकाबले ऊँची- ऊंची बोलियां लगाकर संपत्ति को खरीद लिया। आगे चलकर उन्होंने खरीद की राशि को अदा कसे से इनकर दिया, इसलिए उस भूसंपदा को फिर से बेचना पड़ा एक बार फिर ज़मींदार के एजेंटों ने ही उसे खरीद लिया और फिर एक बार खरीद की रकम नहीं अदा की गई और इसलिए एक बार फिर नीलामी करनी पड़ी।
(iv) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी मांग नहीं अदा करता था: इस प्रकार कंपनी कभी-कभार ही किसी मामले में इकट्ठी हुई बकाया राजस्व की राशियों को वसूल कर पाती थी।
(v)जब कोई बाहरी व्यक्ति नीलामी में कोई जमीन खरीद लेते थे तभी उन्हें हर मामले में उसका कब्जा नही मिलता था। कभी-कभी तो पुराने जमींदार के "लठियाल" नए खरीददार के लोगों को मारपीटकर भगा देते थे और कभी - कभी तो ऐसा भी होता था कि पुराने रैयत बाहरी लोगों को नए खरीददारों के लोगों की जमीन में घुसने ही नही देते थे।
(vi) जिसके परिणामस्वरूप गाँवों पर जमीदार की सत्ता और अधिक मजबूत हो गई लेकिन आगे चलकर 1930 के दशक की घोर मंदी की हालात में अंततः जमींदारों का महा बैठ गया और जोतदारों ने देहात में अपने पॉव मजबूत कर लिए।
09.झूम खेती से आप क्या समझते है?
उत्तर. जो कृषि एक स्थान पर स्थायी न रहकर अलग अलग स्थानों पर की जाती है उसे झूम खेती करते है।
10. पांचवी रिपोर्ट से आप क्या समझते है और यह किस प्रकार ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासनिक गतिविधियों से जुड़ी एक विस्तृत ग्रंथ थी?
उत्तर.(i) सन् 1813 में ब्रिटिश संसद में पेश की गई थी। यह उन रिपोर्टों में से पाँचवी रिपोर्ट थी जो भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन तथा क्रियाकलापों के विषय में तैयार की गई थी। अकसर 'पाँचवीं रिपोर्ट' के नाम से उल्लिखित यह रिपोर्ट 1002 पृष्ठों में थी।
(ii) इसके 800 से अधिक पृष्ठ परिशिष्ट के थे जिसमें जमींदारों और रैयतों की अर्जियाँ, भिन्न भिन्न जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्ट, राजस्व विवरणियों से संबंधित सांख्यिकीय तालिकाएँ और अधिकारियों द्वारा बंगाल और मद्रास के राजस्व तथा न्यायिक प्रशासन पर लिखित टिप्पणियाँ शामिल की गई थी।
(iii) कंपनी ने 1160 के दशक के मध्य में जब से बंगाल में अपने आपकों स्थापित किया था तभी से इंग्लैंड में उसके. क्रियाकलापों पर बारीकी से नजर रखी जाने लगी थी और उन पर चर्चा की जाती थी। ब्रिटेन में बहुत से ऐसे समूह भी थे जो भारत तथा चीन के साथ व्यापार पर ईस्ट इंडिया कंपनी के एकाधिकार दिया गया था।
(iv) ब्रिटिश संसद ने भारत में कंपनी के शासन को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए अठारहवीं शताब्दी के अंतिम दश्यकों में अनेक अधिनियम पारित किए। कंपनी को बाध्य किया गया कि वह भारत के प्रशासन के विषय में नियमित रूप से अपनी रिपोर्ट भेजा करे और कम्पनी के कामकाज की जाँच करने के लिए कई समितियाँ नियुक्त की गई।
(V) " पांचवी रिपोर्ट" एक ऐसी रिपोर्ट है जो एक एवर समिति द्वारा तैयार की गई थी। यह रिपोर्ट भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के स्वरूप पर ब्रिटिश संसद में गंभीर वाद-विवाद का आधार की।
(Vi) पाँचवीं रिपोर्ट में उपलब्ध साक्ष्य बहुमूल्य है। अतः इसलिए सरकारी रिपोर्ट को सावधानीपूर्वक पढ़ना और समझना चाहिए
(Vii) क्योंकि इसमें शोधकर्ताओं ने ग्रामीण बंगाल में औपनिवेशिक शासन के बारे में लिखने के लिए, बंगाल के अनेक ज़मींदारों के अभिलेखागारों तथा जिलों के स्थानीय अभिलेखों की सावधानी पूर्वक जाँच की है। उसे पता चलता कि पाँचवीं रिपोर्ट लिखने वाले कंपनी के कुप्रशासन की आलोचना करने पर तुले हुए थे इसलिए पाँचवी रिपोर्ट में परंपरागत ज़मींदारी सत्ता के पतन का वर्णन अतिरंजित है और जिस पैमाने पर जमींदार लोग अपनी जमीनं खोते जा रहे थे उसके बारे में बढ़ा-चढ़ा कर लिखा गया है
Q11.बुकानन कौन था ?
उत्तर. बुकानन एक चिकित्सक था जो भारत आया और बंगाल चिकित्सा सेवा में कार्य किया। कुछ वर्षों तक वह भारत के गर्वनर जनरल लॉर्ड वेलेजली का लिए - चिकित्सक था।
Q12 राजमहल की पहाडियों के निवासियों ने जीवन निर्वाह के लिए किन-किन तरीकों को अपना रखा था?
उत्तर. (i) पाडियाँ लोग खाने के लिए जंगलों से महुआ के फूल इकट्ठा करते थे। बेचने के लिए रेशम के कोया और राल, काठकोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठा करते थे।
(ii) पेड़ो के नीचे जो छोटे-छोटे पौधे उगाते थे या परती ज़मीन पर जो घास फूस की हरी चादर सी बिछ जाती थी। वह पशुओं के लिए चरागाह का जाती थी। अतः इस प्रकार राजमहल की पहाड़ियों में रहने वाले लोग जीवन निर्वाह करते थे।
Q13.सन् 1970 और 80 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों का चयन के पहाड़ियों के प्रति कैसा रवैया था? स्पष्ट कीजिए ।
उतर. (i) 1770 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने इन पहाड़ियों को निर्मूल कर देने की कुर नीति अपना ली और संहार करने लगे । 1780 के दशक में भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैंड ने शांति स्थापना की नीति प्रस्तावित की जिसके अनुसार पाड़िया मुखियाओं को एक वार्षिक भत्ता दिया जाता था और बदले में उन्हें अपने आदमियों का चाल चलन ठीक रखने की जिम्मेदारी ऐसी होगी।
(ii) गए उनसे यह भी आशा की गई थी कि वे अपनी बस्तियों में व्यवस्था बनाए रखेंगे और अपने लोगों को अनुशासन में रखेगा लेकिन बहुत से पाड़िया मुखियाओं ने भत्ता लेने से मना कर दिया। जिन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया उनमें से अधिकांश अपने समुदाय में अपनी सत्ता खो बैठे। औपनिवेशिक सरकार के वेतनभोगी का जाने से उन्हें अधीनस्त कर्मचारी सुखिया माना जाने लगा।
(iii) जब शांति स्थापना के लिए अभियान चल रहे थे तभी पहाड़ियों लोग अपने आपको शत्रुतापूर्ण सैन्यंबलों से बचाने के लिए और बाहरी लोगों से लड़ाई चालू रखने के लिए पहाड़ो के भीतरी भागों में चले गए। इसलिए जव 1910-11 की सर्दियों में बुकानन ने इस क्षेत्र की यात्रा की थी तो यह स्वाभाविक ही था कि पहाड़िया लोग बुकानन को संदेह व अविश्वास की दृष्टि से देखते ।
(iv) शांति स्थापना के अभियानों के अनुभव और क्रूरतापूर्ण दमन यादों के कारण उनके मन में यह धारणा बन गई थी कि उनके इलोक में ब्रिटिश लोगों की घुसपैठ का क्या असर होने वाला है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता था कि प्रत्येक गोरा आदमी एक ऐसी शक्ति का प्रतिनिधित्व कर रहा है जो उनसे उनके जंगल और जमीन छीन कर उनकी जीवन शैली और जीवित रखने के साधनों को नष्ट करो पर उतारूँ है।
संथालों की भूमिका:
1) संथाल 1980 के दशक के आस-पास बंगाल में "आने लगे थे। जमींदार लोग खेती के लिए नयी भूमि तैवार करने और खेती का विस्तार करने के लिए उन्हें किराये पर रखते थे।
(ii) ब्रिरिश अधिकारियों ने उन्हें जंगल माहाले में बसने का निमंत्रण दिया।
(ⅲ) पहाडी लोग जंगल काटने के लिए हल को हाथ लगने वो तैयार नहीं थे और अब भी उपद्रवी व्यवहार करते थे जबकि इसके विपरीत संथाल आदर्श बशिंदे प्रतीत हुए क्योंकि उन्हें जंगलो का सफाया करने में कोई हिचक नहीं थी ओर वह भूमि पूरी ताकत से जीतते थे।
(iv) संथालों को ज़मीन देकर राजमहल की तलहटी में बसने 'के लिए तैयार कर लिया गया । 1832 तक ज़मीन के एक काफी बड़े इलाके को "दामिन - ई-कोह" के रूप में सीमनकीत कर दिया गया। उन्हें इस इलाके के भीतर रहना था, हल चलाकर खेती कसी थी और स्थायी किसान बनना था।
(V) संथालों को दी जाने वाली भूमि के अनुदान पत्र में यह शरत थी कि उनका दी गई भूमि के कम -से-कम दसवें भाग को साफ करके पहले दस वर्षों के भीतर जोतना था।
(vi) इस पूरे क्षेत्र का सर्वेक्षण करके उसका नक्शा तैयार किया गया। इसके चारों ओर खंभे गाड़कर इसकी परिसीमा निर्धारित कर दी गई और इसे मैदानी इलाकों के स्थापी कृषकों की दुनिया से और पहाड़िया लोगों की पहाड़ियों से अलग कर दिया गया।
संथालों की मुख्य विशेषता :-
(i) दामिन - इ-काह के सीमांकन के बाद, संथालों की बस्तियाँ बड़ी तेजी से बढ़ी।
(ii)संथाल स्थायी बाशिंदे थे।
(iii) संथालों के गांवों की संख्या जो 1838 में 40 थी, तेजी से बढ़कर 1851 तक 1473 पहुँच गई थी।
(iv) संथालों की जनसंख्या जो केवल 3000 थी, बढ़कर 82000 से अधिक हो गई।
(V) संथालों ने खानाबदोश की ज़िन्दगी को छोड़ दिया।
14 उन्नीसवीं शताब्दी के संथाल गीतों और मिथकों में उनकी यात्रा के लंबे इतिहास का बार-बार आलेख क्यों किया गया?
उत्तर .(i) उनमें कहा गया है कि संथाल लोग अपने लिए बसने योग्य स्थान की खोज में बराबर बिना थके चलते ही रहते थे। अब यहाँ दामिन - इ-कोह में आकार मानो उनकी इस यात्रा को पूर्ण विरान लग गया।
(ii) जब संथाल राजमहल की पहाड़ियों पर बसे तो पहाड़िया लोगों "ने इसका प्रतिरोध किया पर बाद में मजबूरन इन पहाड़ियों को जंगल के भीतर की ओर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
(ⅲ) उन्हें निचली पहाड़ियों तथा पहाड़ियों में नीचे की ओर जाने से रोक दिया गया और ऊपरि पहाड़ियों के चटानी और अधिक बंजर इलाकों तथा भीतरी शुष्क भागों तक सीमित कर दिया गया। इससे उनके रहन-सहन तथा जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ा और आगे चलकर वे गरीब हो गए।
(iv) झूम खेती नयी-से-नई जमीने खोजने और भूमि की प्राकृतिक उर्वरता का उपयोग करने की क्षमता पर निर्भर रहती है। अब सर्वाधिक उर्वर जमीने उनके लिए दुर्लभ हो गई क्योंकि वे अब दामिन का हिस्सा बन चुकी थीं। अत: संथालों से जुड़ी तमाम जानकारीयो का वर्णन 19वीं शताब्दी के संथाल गीतों और कहानियों मे किया गया।
15 ''दामिन - इ-कोह" का संथालों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर. (ⅰ) संथालों ने खानाबदोश की जिन्दगी को छोड़कर स्थायी किसान बन गये।
(ii) संथाल स्थायी बाशिंदे बन गए।
Q16. संथालों को दी जाने वाली भूमि के अनुदान पत्र मे. क्या शर्त थी?
उत्तर. संथालों को दी जाने वाली भूमि के अनुदान पत्र में शर्त थी कि उनको दी गई भूमि भाग को कम से कम दसवें भाग को साफ करके पहले दस वर्षों के भीतर जोतना होगा।
Q17.संथालों ने जमींदारों, साहूकारों और "औपनिवेशिक राज के खिलाफ विद्रोह का निर्णय क्यों लिया ?
उतर. (ⅰ) क्योंकि संथालों ने भी जल्द ही यह समझ लिया की उन्होंने जिस भूमि पर खेती कसी शुरू की थी वह उनके हाथों से निकलती जा रही है।
(ii) संथाले ने जिस जमीन को साफ करके खेती करने शुरू की थी उस पर सरकार भारी कर लगा रही थी, साहूकार लोग बहुत ऊँची दर व्याज लगा रहे थे और कर्ज अदा न किए जाने की सूरत में जमीन पर ही कब्जा कर रहे थे, और जमींदार लोग दामिन इलाके पर नियंत्रण का दावा कर रहे थ।
(iii)1850 के दशक तक, संथाल लोग यह महसूस कसे लगे थे कि अपने लिए एक आदर्श संसार का निर्माण करने के लिए, जहाँ उनका अपना शासन हो, जमींदारों साहूकारों और औपनिवेशक राज के विरुद्ध विद्रोह करने का समय आ गया है।
iv) 1855-56 के संथाल विद्रोह के बाद संथाल परगने का निर्माण कर दिया गया, जिसके लिए 5,500 वर्गमील का क्षेत्र भागलपुर और बीरभूम जिलों में से लिया गया। औपनिवेशिक राज को आशा थी कि संथालों के लिए नया परागना बनाने र उसमें कुछ विशेष कानून लागू करने से संथाल लोग संतुष्ट हो जाएंगे।
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