Class 11th Pol-Science Chapter 6 Notes in Hindi (न्यायपालिका)

Chapter 6Class 11th Pol-Science Chapter 6 Notes in Hindi (न्यायपालिका). सभी विवादों को कानून के शासन के सिध्दांत के आधार पर हल करने के लिए.
Chapter 6Class 11th  Pol-Science Chapter 6 Notes in Hindi (न्यायपालिका)

न्यायपालिका

Q. सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना कब हुई ?

Ans.- 1950 मैं।

Q. सर्वोच्च न्यायालय कहाँ पर स्थिति है ?

Ans.- नई दिल्ली में।

Q. हमें स्वतंत्र न्यायपालिका को चाहिए ?

Ans.- i) सभी विवादों को कानून के शासन के सिध्दांत के आधार पर हल करने के लिए ।

ⅱ) सभी लोग पर एक समान कानून लागू हो इसके लिए ।

iii) ताकि लोकतंत्र की जगह किसी एक व्यक्ति था समूह की तानाशाही ना हों।

*न्यायपालिका की स्वतंत्रता -:

Ans. i) सरकार के अन्य दो अंग-विधायिका और कार्यपालिका -न्यायपालिका के कार्यों में किसी प्रकार की बाधा ना पहुंचाए ताकी वह ठीक ढंग से कार्य कर सके।

(ⅱ) सरकार के अन्य अंग न्यायपालिका के निर्णयों में हस्तक्षेप न करें।

iii) न्यायाधीश बिना  भय या भेदभाव के अपना कार्य कर सकें।

Q. न्यायपालिका को स्वतंत्रता कैसे दी जा सकती है और उसे सुरक्षित कैसे बनाया जा सकता है?

Ans.- i) न्यायाधीशों की नियुक्तियों के मामले में विद्यायिका को सम्मिलित नहीं किया गया है।

ii) न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए किसी व्यक्ति को वकालत का अनुभव या कानून का विशेष ज्ञान होना चाहिए।

iii) न्यायाधीशों का कार्यकाल निश्चित होता है वे सेवानिवृत होने तक पद पर बने रहते हैं।

iv) संविधान में न्यायाधीशों को हटाने के लिए बहुत कठिन प्रक्रिया निर्धारित की गई है।

v) न्यायपालिका विधायिका या कार्यपालीका पर वित्तीय रूप से निर्भर नहीं है।

vi) न्यायाधीशों के कार्यों और निर्णयों की व्यक्तिगत की आलोचना नहीं की जा सकती।

vii) संसद न्यायाधीशों के आचरण पर केवल तभी चर्च कर सकती है जब वह उनको हटाने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है।

Q न्यायाधीशों को नियुक्ति कैसे की जाती है ?

Ans- i) भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में वर्षों से परंपरा बन गई है कि सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को इस पद पर नियुक्त किया जाएगा।

ii) सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालाय के अन्य न्यायधीशो की नियुक्ति राष्ट्र‌पति भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह से करता है।

*(1973) 1973 मे तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों को छोड़ कर न्यायमूर्ति ए एन रे  को भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्ति किया गया।

* (1975) 1975 मे न्यायमूर्ति एच आर खन्ना को पीछे छोड़ते हुए न्यान्यमुर्ति एम.एच. वेग की नियुक्ति की।

Q. न्यायाधीशों को उनकी पद से हटाने की प्रक्रिया का उल्लेख किजिए ।

Ans.i) सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाना काफी कठिन है।

(ⅱ) कदत्वार साबित होने अपना अयोग्यता की दशा में ही उन्हें पद से हटाया जा सकता है।

(ⅱ) न्यायाधीश के विरुद्ध आरोपो पर संसद के एक विशेष बहुमत की स्वीकृत्ति जरूरी होती है।

(iv) न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया अत्यंत कठित है और जब तक संसद के सते के सदस्यों में आम सहमति न हो तब तक किसी न्यायाधीश को हटाया नही जा सकता।

(V) जहाँ उनकी नियुक्ति में कार्यपालिका को महत्वपूर्ण भूमिका है वहीं उन्हें हटाने की शक्ति विधायिका के पास है।

*भारत का सर्वोच्च न्यायालय

i) सर्वोच्च न्यायालय की स्थापन 1950 में हुई थीं।

ⅱ) भारत का सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली में स्थित है।

(ⅲ) भारत के सर्वोच्च न्यायालय मे कुल 34 न्यायाधीश होते है।

iv) सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद124 के खंड (2) के तहत राष्ट्रपति द्वारा की जाती थीं।

v) इसके फैसले सभी अदालतों को मानने होते है।

vi) यह उच्च न्यायालय के न्यायधीशों का तबादला कर सकता है।

vii) 'यह किसी अदालत का मुकद‌मा अपने पास मंगवा सकता है।

viii) यह किसी एक उच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमें को दूसरे उच्च न्यायालय में भिजवा सकता है।

* उच्च न्यायालय

i) भारत में कुल 25 उच्च न्यायालय है।

ⅱ) इलाहबाद भारत का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है।

iii) दिल्ली उच्च न्यायालय की स्थापन 31 Oct 1966 को हुई थी।

iv) उच्च न्यायालय निचली अदालतों के फैसले पर की गई अपील की सुन‌वाई कर सकता है।

V) H.C मौलिक अधिकारों को बहाल करने के लिए रिट जारी कर सकता है।

vi) H.C राज्य के क्षेत्राधिकार मे आने वाले मुकदमों का निपटारा कर सकता है।

vii) H.C अपने अधीनस्थ अदालतों का परिक्षण और नियंत्रण करता है।

* जिला अदालत

Ans.i) जिला अदालत जिलें में दायर मुकद‌मो की सुनवाई करती है।

ii) जिला अदालत निचली अदालतों के फैसले पर की गई अपील की सुनवाई करती है।

iii)  जिला अदालत गंभीर किस्म के आपराधिक मामलों पर फैसला देती है।

* (अधीनस्थ अदालत)

i) फौजदारी और दीवानी किस्म के मुकदमों पर विचार करती है।

Q.सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य क्षेत्राधिकार का उल्लेख कीजिए ?

Ans- सर्वोच्च न्यायालय को प्राप्त मुख्य क्षेत्राधिकार निम्न है।

i) मौलिक

ii) अपीली

iii) सलाहकारी

iv) रिट

*(मौलिक क्षेत्राधिकार)

i) मौलिक क्षेत्राधिकार का अर्थ है कि कुछ मुकदमों की सुनवाई सीधे सर्वोच्च न्यायालय कर सकता है। ऐसे मुकदमों में पहले निचली अदालतों में सुनवाई जरूरी नहीं।

ii) सर्वोच्च न्यायालय का मौलिक क्षेत्राधिकार उसे संघीय मामलों से संबंधित सभी विवादों में एक अंपायर या निर्णायक की भूमिका देता है।

iii) किसी भी संघीय व्यवस्था में केन्द्र और राज्यों के बीच तथा विभिन्न राज्यों में परस्पर कानूनी विवादों का उठान स्वाभाविक है। इन विवादों को हल करने को जिम्मेदारी सर्वोच्च न्यायालय की है। इसे मौलिक क्षेत्राधिकार इसलिए कहते है क्योंकि इन मामलों को केवल सर्वोच्च न्यायालय ही हल कर सकता है। इनकी सुनवाई न तो उच्च न्यायालय और न ही अधीनस्थ न्यायालयों में हो सकती है।

*(रिट संबंधी क्षेत्राधिकार)

i) मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर कोई भी व्यक्ति इंसाफ पाने के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायालय जासकता है।

ii) सर्वोच्च न्यायालय अपने विशेष आदेश रिट के रूप में दे सकता है। उच्च न्यायालय भी रिट जारी कर सकते है।

iii) इन रिट के माध्यम से न्यायालय कार्यपालिका को कुछ करने या न करने का आदेश दे सकता है।

*(अपीली क्षेत्राधिकार)

i) सर्वोच्च न्यायालय अपील का उच्चतम न्यायालय है।

ii) कोइ भी व्यक्ति उच्च न्यायालय के निर्णय के विरद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

ⅲ) अपीली क्षेत्राधिकार का मतलब यह है कि सर्वोच्च न्यायालय पूरे मुकदमों पर पुनर्विचार करेगा और उसके कानूनी मुद्दों की दुबारा जाँच करेगा 

* (सलाह संबंधी क्षेत्राधिकार)

i) मौलिक और अपीली क्षेत्राधिकार के अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार भी है।

ii) भारत का राष्ट्रपति लोकहित या संविधान की व्याख्या से संबंधित किसी विषय को सर्वोच्च न्यायालय के पास परामर्श के लिए भेज सकता हैं।

Q. सर्वोच्च न्यायालय के परामर्श देने की शक्ति की क्या उपयोगिता है।

Ans. i) इसमें सरकार को छूट मिल जाती है कि किसी महत्वपूर्ण मसलें पर कार्रवाई करने से पहले वह अदालत की कानूनी राय जान लें।

ii) सर्वोच्च न्यायालय की सलाह मानकर सरकार अपने प्रस्तावित निर्णय या विधेयक मे समुचिक संशोधन कर सकती है।

SAL-सामाजिक व्यवहार याचिका (Soical Action hitigation)

* जनहित याचिका

i) जनहित याचिका 'जनहित संबंधित होती है।

ii) पहली जनहित याचिका 1979 मे दायर की गई थी। इस जनहित याचिका की हुसैनारा खातून बनाम बिहार सरकार के नाम में जाना जाता है।

iii) जनहित याचिका न्यायिक सक्रियता का सबसे प्रभावी माध्यम है।

iv) जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय ने अधिकारों का दायर बढ़ा। दिया है।

v) जनहित याचिको और न्यायिक सक्रियता के द्वारा न्यायपालिका ने उन  मामलों में रुचि देखी है. जहाँ सामाज के कुछ वर्गों के लोग आसानी से अदालत की शरण नहीं ले सकते।

V) न्यायालय ने जन-सेवा से भरें नागरिक सामाजिक संगठन और वकीलों को समाज के जरूरत मंद लोगों और गरीबी की और से जनहित याचिका दायर करने की इजाजत दी है।

Vi) न्यायिक सक्रियता का हमारी राजनीतिक व्यवस्था पर बहुत प्रभाव पड़ा। इससे न केवल व्यक्तियों बल्कि विभिन्न समूहों को भी अदालत जाने का अवसर मिला ।

viii) इसने न्याय व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाया और कार्यपालिका उत्तरदायी बनने पर बाध्य हुई चुनाव प्रणाली को भी इसने ज्यादा मुक्त और निष्पक्ष बनाने का प्रयास किया।

*(जनहित याचिका का नकारात्मक प्रभाव

i)जनहित याचिका से न्यायालयों में काम का बोझ बढ़ा है।

ii) न्यायिक सक्रियता से विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिक के कार्यों के बीच का अंतर धुंधला हो गया है।

iii) न्यायालय उन समस्याओं' में उलझ गया जिसे कार्यपालिका को हल करना चाहिए ।

Q.संविधान ऐसी कौन-सी विधियों का वर्णन करती है। जिससे सर्वोच्च न्यायालय अधिकारों की रक्षाकर सकें।

Ans. i).सर्वोच्च न्यायालय अन्य रिट जारी करके मौलिक अधिकारो को फिर से स्थापीत कर सकता है।

ii).अनुच्छेद 226 अनुसार H.C को भी ऐसा रिट जारी करने का अधिकार है।

iii). अनुच्छेद 13 अनुसार सर्वोच्च न्यायालाय किसी कानून की गैर संवैधानिक घोषित कर उसे लागू होने से रोक सकता है।

iv).संविधान का दूसरा प्रावधान यह मौलिक अधिकारों के व्याख्या कार के रूप में कार्य करती है(अनुच्छेद - 13)

Q. न्यायिक पुनरावलोकन से आप क्या समझते है?

Ans. न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय किसी भी कानून की संवैधानिकता जाँच सकता है और यदि वह संविधान के प्रावधानों के विपरीत हों, तो न्यायालय उसे गैर - संवैधानिक घोषित कर सकता है।

*(न्यायिक पुनरावलोकन )

ⅰ). संविधान में कही भी न्यायिक पुनराव‌लोकन शब्द का प्रयोग नही किया गया है।

ii). संघीय संबंधों के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय अपनी न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

ⅲ).सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ती  के द्वारा ऐसे किसी भी कानून का परीक्षण कर सकता है, जो मौलिक अधिकारों का  उल्लंघन करता हों या संविधान में शक्ति-विभाजन योजना के प्रतिकृट   हैं।

iv) न्यायिक पुनराव‌लोकन की शक्ति राज्यों की विधायिका द्वारा बनाए कानूनों पर भी लागू होती है।

۷) रिट जारी करने की और न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति‌याँ सर्वोच्च न्यायालय को अत्यंत शक्तिशाली बना देती है।

vi) राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों को भी न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति में शामिल किया गया है।

Q.संसद और न्यायपालिका के बीच किन मुद्दे को लेकर विवाद है?

Ans. i) निजी संपति के अधिकार को लेकर

ii) मौलिक अधिकारों को सीमित प्रतिबंधन को समाप्त करने की संसद की शक्ति का दायरे को लेकर है।

(ⅲ) संसद द्वारा संविधान संशोधन करने की शक्ति को लेकर

Q. 1967-1973 के बीच का साल काफी विवाद पूर्ण क्यो रहा ? 

Ans. भूमि - सुधार कानूनों के अतिरिक्त निवारक नजरबंदी कानून नौकरियों में आरक्षण संबंधी कानून, सार्वजनिक उद्देश्य के लिए निजी संपति के अधिग्रहण संबंधी नियम और अधिग्रहीत निजी संपति के मुआवजे संबंधी कानून आदि ऐसे कुछ उदाहरण है जिन पर विधायिका और न्यायपालिका के बीच विवाद हुए।

*(केशवानंद भारती मुकदमें):

i) 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने संसद और न्यायापालिका को लेकर एक निर्णय लिया था जिसे केशवानंद भारती मुकदमें के नाम से जाना जाता हैं।

ii) इस मुकदमें में न्यायालय ने निर्णय लिया कि संविधान  एक मूल ढाँचा है और संसद सहित कोई भी उस मूल ढाँचे से छेड़- छाड़ नही कर सकता।

iii) संविधान  संशोधन  द्वारा भी इस मूल ढांचे को नही बदला जा सकता हैं।

iv) न्यायालय ने दो और काम किए। संपति के अधिकार के विवादास्पद मुद्दे के बारे में न्यायालाय ने कहा कि यह मूल ढाँचे का हिस्सा नहीं है और इसलिए उस पर समुचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

v) न्यायालय ने यह निर्णय करने का अधिकार अपने पास रखा कि कोई मुद्दा मूल ढांचे का हिस्सा है या नहीं। यह निर्णय न्यायपालिका द्वारा संविधान की व्याख्या करने की शक्ति का सर्वोत्तम उदाहरण है।