Class 11th Pol-Science Chapter 10 Notes in Hindi (संविधान एक राजनीतिक दर्शन)

Class 11th Pol-Science Chapter 10 Notes in Hindi (संविधान एक राजनीतिक दर्शन). हमें संविधान की आवश्यकता क्यों है? Ans. i) क्योंकि यह राज्य को निरंक
Class 11th  Pol-Science Chapter 10 Notes in Hindi

 संविधान एक राजनीतिक दर्शन 

Q. हमें संविधान की आवश्यकता क्यों है ?

Ans. i) क्योंकि यह राज्य को निरंकुश बनने से रोकता है।

ii)शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक साधन भी प्रदान करता है।

iii) संविधान राजनीतिक आत्मनिर्णय का उद्देश्य है।

*(पंडित नेहरू का संविधान और संविधान सभा पर विचार तह)

i) उनका कहना था कि संविधान सभा की मांग पूर्ण आत्मनिर्णय की सामूहिक माँग का प्रतिरूप है। क्योंकि सिर्फ भारतीय जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों से बनी संविधान सभा को ही बगैर बाहरी हस्तक्षेप के भारतीय संविधान बनाने का अधिकार है।

ii) नेहरू की दलील थी कि संविधान सभा सिर्फ जन-प्रतिनिधियों अथवा योग्य वकीलों का जमावड़ा भर नहीं है बल्कि यह स्वयं में राह पर चल पड़ा एक राष्ट्र है, जो अपने अतीत के राजनीतिक और सामाजिक ढांचे से निकलकर अपने बनाए गए आवरण को पहनने की तैयारी कर रहा है।

*अमेरिका

 i)अमेरिका दुनिया का पहला राष्ट्र है जिसने सर्वप्रथम अपने देश का संविधान बनाया था।

ii) अमेरिका संविधान 18 वी शताब्दी के उतरार्द्ध में लिखा गया था

Q.हमारा संविधान किसी एक शीर्षक  में अंटने से क्यो इनकार करता है?

Ans. क्योकि यह संविधान स्वतंत्रता, समानता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय तथा एक न एक किस्म की राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिबद्ध है।

Q. हमारे संविधान' का राजनीतिक दर्शन क्या है?

Ans. हमारे संविधान का राजनीतिक दर्शन निम्न है:

i) संविधान व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है।

ii) संविधान के दर्शन से अभिप्राय संविधान को बुनियादी अवधारणाओं से है जैसे अधिकार, नागरिकता लोकतंत्र आदि ।

iii) संविधान में निहित आदर्श जैसे समानता, स्वतंत्रता हमें संविधान के दर्शन करवातें है।

iv) हमारा संविधान इस बात पर जोर देता है कि उसके दर्शन पर शांतिपूर्ण व लोकतांत्रिक तरीके में अमल किया जाए तथा उन मूल्यों को जिन पर नीतिया बनी है। इन नैतिक बुनियादी अवधारणाओं पर चल कर उद्देश्य प्राप्त करे।

*भारतीय संविधान की मुख्य विशेषता 

ⅰ) भारत का संविधान कठोर तथा लचीला दोनों है।

ii) यह विश्व सर्वोत्तम संविधान है।

iii) राष्ट्रीय पहचान |

iv) भारत का संविधान धर्म / पंथ निरपेक्षता पर अधारित है।

v) सामाजिक न्याय ।

vi) इकहरी नागरिकता ।

vii) अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान ।

viii) संसदीय शासन प्रणाली ।

ix) सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार।

x) मूल भूत ढाँचा संशोधनों के बाद भी बर करार ।

xi) स्वतंत्र तथा निष्पक्ष न्यायापालिका। 

Q. संविधान के दर्शन का क्या आशय " है ?

Ans. i) संविधान कुछ अवधारणों के आधार बना है। इन अवधारणाओं की व्याख्या हमारे लिए जरूरी है। है।

ii) हमारे सामने एक ऐसे समाज और शासन व्यवस्था की तस्वीर साफ होनी चाहिए हैं। चाहिए जो संविधान की बुनियादी अवधारणाओं की व्याख्या से मेल खाती हैं।

iii) भारतीय संविधान की संविधान सभा की बहसों के साथ जोड़कर पढ़ा जाना  चाहिए ताकि सैध्दांतिक रूप से हम बता सकें कि ये आदर्श कहाँ तक और क्यों ठीक है, तथा आगे उनमें कौन-से सुधार किए जा सकते

:- जापान का संविधान शांति संविधान कहा जात है।

*(राजा राममोहन राय)

ⅰ) यह‌ भारत के समाज सुधारक थे।

ii) इन्होंनें प्रेस की आजादी की काट-छाँट का विरोध किया था।

Q.भारत का उदारवाद किन दो मायनों में मह महत्वपूर्ण है?

Ans. i) हमारा संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है।

ii) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।

Q- हमारे, संविधान में अनुदायी अधारीत अधिकारों की मान्यता क्यों दी थी ?

Ans. क्योंकि भारत में अनेक संस्कृतिक समुदाय है। जिनके भाषा और संस्कृति अलग - अलग है।

Q. पारस्परिक निषेध क्या है?

Ans. इसका अर्थ है-धर्म और राज्य एक दूसरे के अंदरुनी  मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

Q. संविधान निर्माता धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी मॉडल से किन दो रूपों से अलग अलग हुए और इसके कारण क्या थे?

Ans.  i) धार्मिक समूहों के अधिकार ।

ii) राज्य का हस्तक्षेप करने का अधिकार ।

* धार्मिक समूहों का अधिकार 

i) संविधान निर्माता विभिन्न समुदायों के बीच बराबरी के रिश्ते को उतना ही जरूरी - मानते थे जितना विभिन्न व्यक्तियों के बीच बराबरी को।

(कारण)- इसका कारण यह की किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान का भाव सीधे-सीधे उसके समुदाय की हैसियत पर निर्भर करता है।

* राज्य का हस्तक्षेप करने का अधिकार

i) भारत में धर्म और राज्य के अलगाव का अर्थ पारस्परिक - निषेध नही। बल्कि राज्य की धर्म में सिध्दांतगत दूरी है।  यह जटिल विचार है। इससे राज्य को सभी धर्मों से दूरी रखने की  छुट मिलती है, ताकि वह अक्सर के अनुकूल धर्म के मामलों में हस्तक्षेप कर सकें अथवा ऐसे मामलों दखल देने से बचे रहें।

* भारतीय संविधान की उपलब्धियां

i) संविधान ने उदारवादी व्यक्तिवाद को एक शक्ल देकर उसे मजबूत किया ।

ii) संविधान में व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आँच लागा बगैर सामाजिक न्याय के सिध्दांत को स्वीकार किया है।

iii) विभिन्न समुदायों के आपसी तनाव और झगड़े की पृष्ठभूमि में भी भारतीय संविधान में समूहगत अधिकार प्रदान किए है।

:- 1964 में नागरिक अधिकार आंदोलन हुए था।

Q - भारत में सार्वभौम मताधिकार को क्यों अपनाया गया ?

Ans. कल किसी भी व्यस्क व्यक्ति (18+) को बिना किसी जाति, धर्म, वर्ग वर्ष लिंग आदि के भेद‌भाव के मतदान देने का अधिकार है।

०: क्योंकि पश्चिम के उन देशों में भी जहाँ लोकतन्त्र की जड़ स्थायी रूप से जम चुकी थी, कामगार तबके और महिलाओं को मतदान का अधिकार काफी देर से दिया गया था।

Q-भारत के लिए अनौपचारिक रूप से संविधान तैयार करने का पहला प्रभास कब और किस नाम से किया गया था ?

Ans.'कंस्टिट्‌यूशन ऑफ इंडिया बिल 'के नाम से सन् 1897 में हुआ था

Q.मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट कब प्रकाशित हुई थी और इस रिपोर्ट में मतदान की आयु कितनी निश्चित हुई थीं?

Any-मोतीलाल नेहरू 1928 में प्रकाशित हुई थी और इस रिपोर्ट में मतदान की आयु 24 वर्ष निश्चित की गयी थीं।

Q. अनुच्छेद 371 क्या है?

Ans.अनुच्छेद 371 के तहत पूर्वोत्तर के राज्यों की विशेषाधिकार दिया गया है

* (अनु०-371A))- इसके तहत नागालैंड को विशेष दर्जा प्रदान किया गया।

ii) यह अनुच्छेद न सिर्फ नागालैंड में पहले लागू नियमों को मान्यता प्रदान करता है बल्कि आप्रवास पर रोक लगाकर स्थानीय पहचान की रक्षा, भी करता है।

* (अनु० 370) इस अनुच्छेद के तहत जम्मू एवं कश्मीर को विशेष दर्जा दिए गया है।

 (पृथक निर्वाचन-मंडल) - जिस निर्वाचन क्षेत्र में जिस समुदाय का प्रत्याक्षी चुनाव में खड़ा होता है। उसे उसी समुदाय व्यक्ति वोट डाल सकता है।

Q. भारतीय संविधान की आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिए ?

Ans. i) यह संविधान अस्त-व्यस्त है।

ⅱ) इसमें सबकी नुमाइंदगी नहीं हो सकी है।

iii) यह संविधान भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल नहीं है।

iv) भारतीय संविधान एक विदेशी दस्तावेज है।

Q. भारतीय संविधान की मुख्य सीमाएं क्या है?

Ans. i) भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता की धारणा बहुत केंद्रीकृत है।

ii) इसमे लिंगगत - न्याय के कुछ महत्वपूर्ण मसलों खास कर परिवार से जुड़े मुद्दों पर ठीक से ध्यान नही दिया गया है।

iii) एक गरीब और विकास शील देश में कुछ बुनियादी सामाजिक आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकारो का अभिन्न हिस्सा बनाने के बजाय उसे राज्य के नीति-निर्देशक तत्व वाले खंड में डाल दिया गया।